बाबा की चौपाल
बूढ़ा बरगद देख रहा युग की अंधी चाल।
बरसों से सूनी लगती है बाबा की चौपाल।
पाँवों की एड़ियाँ फट गईं,
बँटवारे में नीम कट गई,
कोई खड़ा है मुँह लटकाए, कोई फुलाए गाल।
बरसों से सूनी लगती है बाबा की चौपाल।
बाँट दी गई माँ की लोरी,
मुन्ने की बँट गई कटोरी,
भेंट चढ़ गया बँटवारे की पूजावाला थाल।
बरसों से सूनी लगती है बाबा की चौपाल।
आँगन से रूठा उजियारा,
खामोशी ने पाँव पसारा,
चहल-पहल अब नहीं रही,सूखी सपनों की डाल।
बरसों से सूनी लगती है बाबा की चौपाल।
-आचार्य बलवन्त,
विभागाध्यक्ष हिंदी
कमला कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट स्टडीस
450, ओ.टी.सी.रोड, कॉटनपेट, बेंगलूर-560053 (कर्नाटक)
मो. 91-9844558064 , 7337810240
Email- balwant.acharya@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें