मेघा आओ, जल बरसाओ
मेघा आओ, जल बरसाओ
देखो और नहीं तरसाओ
दुखी हो रहे सब ही के मन
झुलस रहा हरियाली का तन
प्यासी धरती, प्यासा उपवन
आओ! सबकी प्यास बुझाओ।
नदी न अब संगीत सुनाती
लहर न अंगड़ाई ले पाती
घायल हुआ वदन तालों का
जल की औषधि इन्हें पिलाओ
जीव-जंतु सब ही व्याकुल हैं
पानी पीने को आकुल हैं
सबकी दृष्टि गगन को देखे
आकर अम्बर में छा जाओ।
फसलें खोने लगीं जवानी
जीवन नहीं कहीं बिन पानी
धरती हरी-भरी करने को
कण-कण में अमृत भर जाओ।
करुणा मत छोड़ो करुणाकर
शीतलता दे बनो सुधाकर
मिले ज़िन्दगी हर प्राणी को
मौसम की तुम तपन बुझाओ।
- ओंकार सिंह 'ओंकार '
1-बी- 241 बुद्धि विहार , मझोला
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
सम्पर्क सूत्र: 9997505734
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