मंगलवार, 1 अगस्त 2017

हरप्रसाद पुष्पक की कविता : जय मातृभूमि

जय मातृभूमि


बैरी है इस राष्ट्र का जो
करता गड़बड़ झाला हैं ।

सीना चीरो आंख फोड़ दो
या फिर देश निकाला है  ।

पापी निशाच हैं वो जो नित
बस दुश्मन के गुण गाते हैं ।

खाते पीते इस देश का जो
 फिर आंख दिखा गुर्राते हैं ।

मातृभूमि सत्कार भूल कर
अच्छी लगती अब खाला है ।।

सीना चीरो आंख फोड़ दो
या फिर देश निकाला है ।

अपने ध्वज और संविधान का
मान नही रख सकता है  ।

अपनी सेना की निष्ठा पर नित
बस प्रश्न खड़े करता है वो ।

ऐसे पापी नीच की भाषा
सबक सिखाना ही होगा।

जीभ काट उन गददारों की
शूली पे लटकाना ही होगा ।

भारत के वीरों की शक्ति का 
फिर अहसास कराना है 

सीना चीरो आँख फोड़ दो
या दे दो देश निकाला है  ।

उत्तर दे दो फिर एक बार
जो छिप छिप करके आते है

बार बार फिर काश्मीर पर
हमको आँख दिखाते है  ।

उत्तर देना होगा उनको जो
जयचन्द बनकर बिष घोल रहे

शिव भोले के काश्मीर पर 
घृणित भाषा खुलबोल रहे

काश्मीर तो स्वर्ग राष्ट्र का
करता सब को विभौर है ।

मातृभूमि का अंग अभिन्न है
राष्ट्र का कहलाता सिरमौर है ।

देखा भी गर कश्मीर को तूने
तेरा ही अस्त्तित्व मिटा देगें ।

दुनिया के नक्शे से हम पूरा
अब पाकिस्तान मिटा देंगे  ।

- हरप्रसाद पुष्पक 
L.i.g 181/20 आवास विकास,
रूद्रपुर (ऊधम सिंह नगर)
उत्तराखण्ड

सम्पर्क सूत्र : 09927721977

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें