ग़ज़ल
सोचता हूँ अब तू ही बता क्या लिखूँ
तुम्हारे लिये कोई दुआ क्या लिखूंँ।।
मुर्दों की बस्ती में कब से पड़े थे हम
लाश कहाँ गई दिखा क्या लिखूँ।
जीना तो बहुत मुश्किल हो गया है
अब जाऊँ कहां बता क्या लिखूँ।
चन्द घड़ियां जीने की मोहलत और देदो
याद कर लूं मैं अपना खुदा क्या लिखूँ।
परेशांँ है दुनियां मुझसे मैं दुनियां से
अब तो मुझे कुछ समझा क्या लिखूँ।
जैसी भी थी जी-ली मैंने यह जिंदगी
पता नहीं नुक्सां हुआ या नफा क्या लिखूंँ।
दो घड़ी मुझे भी तो तुम याद कर लेना
होगा जब मौत से मेरा निकाह क्या लिखूँ
धड़कता रहा दिल सदैव जिसके लिये
क्यूं नहीं वो दिल में बसा क्या लिखूँ।
बहुत कुछ किया जीने की खातिर मैंने
रहा कोरा जिंदगी का सफा क्या लिखूँ।
अब तक तुम मेरी ही तो सुनती आई हो
आज कुछ अपनी भी तो सुना क्या लिखूँ
बुझ गया चिराग दिल का न मालूम क्यूँ
चली तो न थी ज़रा भी हवा क्या लिखूं।
तेरे लिये तो हमने पूरी जिंदगी डुबो दी
और कहलाये फिर भी बे-वफा क्या लिखूँ।
अपनी ही कई भूलों से भटके हम रास्ता
प्यार किया था या गुनाह क्या लिखूँ।
मर मर कर जी रहे हैं अब तो हम मितवा
कह किसकी थी यह सदा क्या लिखूँ।
क्या समझेंगे लोग मेरी मजबूरियों को कभी
कब टूटेगा मेरा भ्रम का नशा क्या लिखूँ
जख्म मेरे अब तो नासूर होने लगे हैं
दर्द देकर है कौन दिल में बसा क्या लिखूँ।
डूबती हुई कश्ती को बचाये भी तो कौन
समन्दर में करे कौन परवाह क्या लिखूँ।
बिन तेरे टीस सी उठती है मेरे दिल में
दो पल मेरे पास भी तो आ क्या लिखूँ।
मैं कुछ भी कहूं गुनाह समझते हैं लोग
क्या करुँ कुछ तो बतला क्या लिखूँ।
गैरों के जुर्म सबको अक्सर बहुत दिखते है
अपनों पे भी पड़ जाती निगाह क्या लिखूँ।
दर्द दे-देकर कब तक तड़पाओगे मुझे
क्यूँ रहे हो मुझे यूं ही सता क्या लिखूँ।
दर दर भटका हूँ तो तेरी खतिर मैं
कर लेते मुझसे भी सुलाह क्या लिखूँ।
तेरे साथ मैंने था एसा क्या कर दिया
किया क्यूँ मुझको तूने तबाह क्या लिखूँ
जो कुछ भी मेरे पास था तुझे दे दिया
अफसोस तुझे कुछ नहीं जचा क्या लिखू्ँ।
बहुत खिचड़ी पकाई है लोगों ने मेरे खिलाफ
मेरे घर में आज कुछ नहीं पका क्या लिखूं।
पता नहीं यह दुनियाँ क्यूँ दुश्मन हो गयी है
रहा नहीं कोई अपना सखा क्या लिखूँ।
मैने तो कभी किसी को बुरा नहीं कहा
तुम भिड़ते रहे खाहमखाह क्या लिखूँ।
मेरी गलतियों की कोई गिनती नहीं है
क्या माफ होंगे मेरे गुनाह क्या लिखूँ।
हर किसी को गले से लगाया है मैंने
सबने दिया क्यूँ मुझे दगा क्या लिखूँ।
मुझे कत्ल करने से पहले खुद को पूछ लेते
कर लेते मुझसे भी सलाह क्या लिखूंँ।
आने दो मौत को मुश्किल से तो आई है
क्यूँ रहे हो यूँ ही डरा क्या लिखूँ।
वक्त हो चला है अब तो मेरे जाने का
करेगा कौन मुझे इतलाह क्या लिखूं।
मैने दिन भी तो अक्सर काले ही देखे है
क्यूँ रात को कहते हो स्याह क्या लिखूँ
गुनाह ही गुनाह किये हैं मैंने ताउम्र
लगेगी उप्पर कौन सी दफा क्या लिखूँ।
निराश ना -उम्मीद सी है यह मेरी जिन्दगी
है कौन मेरा आखिरी आसरा क्या लिखूँ।
- सुरेश भारद्वाज निराश
H.N. A-58 न्यू धौलाधार कलोनी,
लोअर बड़ोल पी .ओ. दाड़ी
धर्मशाला, जिला कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)
पिन : 176057
सम्पर्क सूत्र : 9418823654
9805385225
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें