मंगलवार, 29 अगस्त 2017

सुरेश भारद्वाज निराश की ग़ज़ल : सोचता हूँ अब तू ही बता क्या लिखूँ 

ग़ज़ल


सोचता हूँ अब तू ही बता क्या लिखूँ 
तुम्हारे लिये कोई दुआ क्या लिखूंँ।।

मुर्दों की बस्ती में कब से पड़े थे हम
लाश कहाँ गई दिखा क्या लिखूँ।

जीना तो बहुत मुश्किल हो गया है
अब  जाऊँ कहां बता क्या लिखूँ।

चन्द घड़ियां जीने की मोहलत और देदो
याद कर लूं  मैं अपना खुदा क्या लिखूँ।

परेशांँ है दुनियां मुझसे मैं दुनियां से
अब तो मुझे कुछ  समझा क्या लिखूँ।

जैसी भी थी जी-ली मैंने  यह जिंदगी
पता नहीं नुक्सां हुआ या नफा क्या  लिखूंँ।

दो घड़ी मुझे भी तो तुम याद कर लेना
होगा जब मौत से मेरा निकाह क्या लिखूँ

धड़कता रहा दिल सदैव जिसके लिये
क्यूं नहीं वो दिल में बसा क्या लिखूँ।

बहुत कुछ किया जीने की खातिर मैंने
रहा कोरा जिंदगी का सफा क्या लिखूँ।

अब तक तुम मेरी ही तो  सुनती आई हो
आज कुछ अपनी भी तो सुना क्या लिखूँ

बुझ गया चिराग दिल का न मालूम क्यूँ
चली तो न थी ज़रा भी हवा क्या लिखूं।

तेरे लिये तो हमने पूरी जिंदगी डुबो दी 
और कहलाये फिर भी बे-वफा क्या लिखूँ।

अपनी ही कई भूलों से भटके हम रास्ता
प्यार किया था या गुनाह क्या लिखूँ।

मर मर कर जी रहे हैं अब तो हम मितवा
कह किसकी थी यह सदा क्या लिखूँ।

क्या समझेंगे लोग मेरी मजबूरियों को कभी
कब टूटेगा मेरा भ्रम का नशा क्या लिखूँ

जख्म मेरे  अब तो नासूर होने  लगे  हैं
दर्द देकर है कौन दिल में बसा क्या लिखूँ।

डूबती हुई कश्ती को बचाये भी तो कौन 
समन्दर में करे कौन परवाह क्या लिखूँ।

बिन तेरे टीस सी उठती है मेरे दिल में
दो पल मेरे पास भी तो आ क्या लिखूँ।

मैं कुछ भी कहूं  गुनाह समझते हैं लोग
क्या करुँ कुछ तो बतला क्या लिखूँ।

गैरों के जुर्म सबको अक्सर बहुत दिखते है
अपनों पे भी पड़ जाती निगाह  क्या लिखूँ।

दर्द दे-देकर कब तक तड़पाओगे मुझे
क्यूँ रहे हो मुझे यूं ही सता क्या लिखूँ।

दर दर भटका हूँ  तो तेरी खतिर मैं
कर लेते मुझसे  भी सुलाह क्या लिखूँ।

तेरे साथ मैंने था एसा क्या कर दिया
किया क्यूँ मुझको तूने तबाह क्या लिखूँ

जो कुछ भी मेरे पास था तुझे दे दिया
अफसोस तुझे कुछ नहीं जचा क्या लिखू्ँ।

बहुत खिचड़ी पकाई है लोगों ने मेरे खिलाफ
मेरे घर में आज कुछ नहीं पका क्या लिखूं।

पता नहीं यह दुनियाँ क्यूँ दुश्मन हो गयी है
रहा नहीं कोई  अपना सखा क्या लिखूँ।

मैने तो कभी किसी को बुरा नहीं कहा
तुम भिड़ते रहे खाहमखाह क्या लिखूँ।

मेरी गलतियों  की कोई गिनती नहीं है
क्या माफ होंगे मेरे गुनाह क्या लिखूँ।

हर किसी को गले से लगाया है  मैंने
सबने दिया क्यूँ मुझे दगा क्या लिखूँ।

मुझे कत्ल करने से पहले खुद को पूछ लेते
कर लेते मुझसे भी सलाह क्या लिखूंँ।

आने दो मौत को मुश्किल से तो आई है
क्यूँ  रहे  हो यूँ  ही  डरा  क्या लिखूँ।

वक्त हो चला है अब तो मेरे जाने का
करेगा कौन मुझे इतलाह क्या लिखूं।

मैने दिन भी तो अक्सर काले ही देखे है
क्यूँ रात को कहते हो स्याह क्या लिखूँ

गुनाह ही गुनाह किये हैं  मैंने ताउम्र
लगेगी उप्पर कौन सी दफा क्या लिखूँ।

निराश ना -उम्मीद  सी है यह मेरी जिन्दगी
है कौन मेरा आखिरी आसरा क्या लिखूँ।

- सुरेश भारद्वाज निराश
H.N. A-58 न्यू धौलाधार कलोनी,
लोअर बड़ोल पी .ओ. दाड़ी
धर्मशाला, जिला कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)
पिन : 176057
सम्पर्क सूत्र : 9418823654
       9805385225

रविवार, 27 अगस्त 2017

वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी को किया जाएगा सम्मानित 

        दिनाँक 27 अगस्त, 2017 को हिन्दी साहित्य संगम की कार्यकारिणी की बैठक मिलन विहार, मुरादाबाद स्थित, मिलन धर्मशाला में आयोजित की गई।


        बैठक में हिन्दी दिवस (14 सितम्बर) को धूमधाम से मनाने का निर्णय लिया गया। संस्था के अध्यक्ष श्री रामदत्त द्विवेदी जी ने बताया कि गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर हिन्दी दिवस समारोह आयोजित किया जाएगा। बैठक में हिन्दी दिवस के कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई।
         बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि इस वर्ष मुरादाबाद के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी जी को 'हिन्दी साहित्य गौरव' सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। कार्यक्रम का आयोजन हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर दिनाँक 13 सितम्बर, 2017 को आकांक्षा विद्यापीठ, मिलन विहार, मुरादाबाद में किया जाएगा।
         बैठक की अध्यक्षता श्री रामदत्त द्विवेदी जी ने तथा संचालन संस्था के महासचिव जितेन्द्र कुमार जौली ने किया। बैठक में श्री ओमकार सिंह ओंकार, योगेन्द्र वर्मा व्योम, राजीव प्रखर, हेमा तिवारी भट्ट, प्रदीप शर्मा, के०पी० सिंह सरल आदि लोग उपस्थित रहे।

शनिवार, 19 अगस्त 2017

बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग को दी गई श्रद्धांजलि

      दिनाँक 18 अगस्त, 2017 ई० को हिन्दी साहित्य संगम के तत्वाधान में मिलन विहार मुरादाबाद स्थित मिलन धर्मशाला में मुरादाबाद के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, महाकवि श्री बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग जी के आकस्मिक निधन पर शोक सभा आयोजित की गई।



       इस अवसर पर उपस्थित वक्ताओं ने कहा कि "अनुराग जी अद्भुत रचनाकार थे, उनके द्वारा रचित गीत, गजलें, कहानियाँ, महाकाव्य, दोहे सहित समग्र रचनाकर्म रचनाकर्म हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। 'अनुराग' जी दैहिक रूप से भले ही हमारे मध्य आज नहीं हों किन्तु अपनी रचनाओं के रूप में सदैव हमारे मध्य बने रहेंगे।"



        ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग जी का निधन 84 वर्ष की आयु में 17 अगस्त, 2017 ई० को हो गया था। उन्होंने अपने जीवन काल में तीन दर्जन से अधिक पुस्तके लिखी लिखीं। आँसू, हिन्दुत्व विनाश की ओर, दर्पन मेरे गाँव का, चाँदनी, धूप आती ही नही, सोनजुही की गन्ध, आँगन में सोनपरी, अपने-अपने सूरज, साँसो की समाधि, चन्दन वन सँवरें, एक टुकड़ा आसमान, आँगन से आकाश तक आदि उनकी कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उन्हे 'दर्पन मेरे गाँव का' महाकाव्य के लिए 15,000 रुपये तथा उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 'चाँदनी' महाकाव्य के लिए 8,000 रुपये का पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्हे दो दर्जन से अधिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया।

        इस अवसर पर राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, अंतर्राष्ट्रीय साहित्य कला मंच, अक्षरा, सुकाव्य प्रेरणा मंच, परमार्थ, संकेत, श्री गोविन्द हिन्दी साहित्य सेवा समिति आदि संस्थाओं के प्रतिनिधियों साहित्य श्री रामदत्त द्विवेदी, जितेन्द्र कुमार जौली, योगेन्द्र वर्मा व्योम, राजीव प्रखर, शिशुपाल मधुकर, अशोक विश्नोई, ओमकार सिंह ओंकार, विवेक निर्मल, के० पी० सिंह सरल, सतीश गुप्ता फ़िगार, विकास मुरादाबादी, योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई, वीरेन्द्र सिंह बृजवासी, रमेशचंद्र यादव कृष्ण, हेमा तिवारी भट्ट, महेश दिवाकर, रामवीर सिंह वीर, अंकित गुप्ता अंक, अशोक विद्रोही, आर० एल० शुक्ला आदि लोग उपस्थित रहे। 

       श्रद्धांजलि सभा के अंत में 2 मिनट का मौन रखकर दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की गई।

मंगलवार, 1 अगस्त 2017

हरप्रसाद पुष्पक की कविता : जय मातृभूमि

जय मातृभूमि


बैरी है इस राष्ट्र का जो
करता गड़बड़ झाला हैं ।

सीना चीरो आंख फोड़ दो
या फिर देश निकाला है  ।

पापी निशाच हैं वो जो नित
बस दुश्मन के गुण गाते हैं ।

खाते पीते इस देश का जो
 फिर आंख दिखा गुर्राते हैं ।

मातृभूमि सत्कार भूल कर
अच्छी लगती अब खाला है ।।

सीना चीरो आंख फोड़ दो
या फिर देश निकाला है ।

अपने ध्वज और संविधान का
मान नही रख सकता है  ।

अपनी सेना की निष्ठा पर नित
बस प्रश्न खड़े करता है वो ।

ऐसे पापी नीच की भाषा
सबक सिखाना ही होगा।

जीभ काट उन गददारों की
शूली पे लटकाना ही होगा ।

भारत के वीरों की शक्ति का 
फिर अहसास कराना है 

सीना चीरो आँख फोड़ दो
या दे दो देश निकाला है  ।

उत्तर दे दो फिर एक बार
जो छिप छिप करके आते है

बार बार फिर काश्मीर पर
हमको आँख दिखाते है  ।

उत्तर देना होगा उनको जो
जयचन्द बनकर बिष घोल रहे

शिव भोले के काश्मीर पर 
घृणित भाषा खुलबोल रहे

काश्मीर तो स्वर्ग राष्ट्र का
करता सब को विभौर है ।

मातृभूमि का अंग अभिन्न है
राष्ट्र का कहलाता सिरमौर है ।

देखा भी गर कश्मीर को तूने
तेरा ही अस्त्तित्व मिटा देगें ।

दुनिया के नक्शे से हम पूरा
अब पाकिस्तान मिटा देंगे  ।

- हरप्रसाद पुष्पक 
L.i.g 181/20 आवास विकास,
रूद्रपुर (ऊधम सिंह नगर)
उत्तराखण्ड

सम्पर्क सूत्र : 09927721977