सोमवार, 7 नवंबर 2016

सत्यानन्द मिश्र शुभम के मुक्तक

सत्यानन्द मिश्र 'शुभम' के मुक्तक



रूप अनूप तेज सूर्य सा चन्द्र से उज्जवल बदन तुम्हारे,
चितवन चकित सुकोमल नैन पुलकित मन हो देख हमारे।
नैन कजरारे कटार से तीखे म्यान के कोर से कोर हैं प्यारे,
चंचल मन बस में कर ले अधरें हैं लाल गुलाब से न्यारे ॥

अल्हड़ मुखड़ा रूप सलोना तन मखमल सा गजब सुहावे,
मस्त अदा श्रृंगार मस्त है मस्त स्वरूप होश बिसरावे।
रूप मनोरम चन्द्र छवि सी सूरत चाँद सा टुकड़ा भावे,
मुख मण्डल है जैसे कुमुदनी देख देख जन अति सुख पावे ॥

केश घटा घनघोर सा उमड़े लटों को जब तुम बिखराती,
दिल का धड़कन बढ़ जाता जब देख हमें तुम मुस्काती।
खिले पुष्प सा खिला है चेहरा उर भीतर जो समा जाती,
अदा दिखाकर प्रेम की ज्वाला अन्तर्मन में जगा जाती ॥

- सत्यानन्द मिश्र "शुभम"
पता :- ग्राम मलमलिया 
पोस्ट- बाँक बाज़ार , उतरौला
जिला - बलरामपुर (उ. प्र.)
सम्पर्क सूत्र  : 72680 88870

रविवार, 30 अक्तूबर 2016

विनोद कुमार दवे का गीत : एक दीया ऐसा रोशन हो

एक दीया ऐसा रोशन हो


एक दीया ऐसा रोशन हो, जो द्वेष रूपी तम दूर करें
एक दीया ऐसा रोशन हो, जो मन के वैर भाव हरें।

कितनी राहों में अँधेरा
कितना दूर है सवेरा
अमावस ऐसी गहराई है
पूनम की रातें घबराई है
चाँद को कोई अपनी अंजुरी में क्षण भर रोक सके
एक दीया ऐसा रोशन हो, जो मन के वैर भाव हरे।

छाया का मतलब तो यही है
प्रकाश आस पास कहीं है
मत घबरा पथिक ये तिमिर देख कर
उजाले से बड़ा अंधकार नहीं है
आँखों से तम हट जाएगा, उज्ज्वल हृदय को रखें
एक दीया ऐसा रोशन हो, जो मन के वैर भाव हरे।

आँगन की तुलसी के चरणों में
पीपल के बूढ़े पेड़ तले
गंदी बस्तियों गरीब झोंपड़ों में
एक दीया तो हमसे जले
घर-घर रोशन हो जाए हम ऐसा कोई क़दम धरे
एक दीया ऐसा रोशन हो जो मन के वैर भाव हरे।

-विनोद कुमार दवे
206, बड़ी ब्रह्मपुरी मुकाम,
पोस्ट भाटून्द, जिला पाली
राजस्थान 306707
 सम्पर्क सूत्र : 9166280718
ईमेल = davevinod14@gmail.com

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2016

सुरेश भारद्वाज निराश की ग़ज़ल : हमने भी जीना छोड़ दिया तेरे जाने के बाद

हमने भी जीना छोड़  दिया  तेरे जाने के बाद


वेवजह खामोशी ने दिल तोड़ दिया तेरे जाने के बाद,
हमने    भी     जीना    छोड़  दिया  तेरे जाने के बाद।

आँखों की नमी आँसू बनकर यूं थी बहने लगी,
उसने   भी  मूँह    मोड़   लिया    तेरे जाने के बाद।

दर्द  की  झंकार    में    लगे    थे  जख्म नाचने,
रिश्तों   ने  भी  दामन    छोड़   दिया तेरे जाने के बाद।

चाहत की खोज़ में  दर  दर  भटके  थे यार  हम,
था नफरत  से   नाता  जोड़  लिया  तेरे जाने के बाद।

तन्हाई  ने  मार  डाला   बोह  मेरा  जिन्दा वजूद,
साँसों   ने  भी    दम   तोड़  दिया  तेरे जाने के बाद।

पग   डंडियाँ    रोने   लगीं  रास्तों  से कैसे मिलें,
कदमों   ने   भी   साथ    छोड़  दिया तेरे जाने के बाद।

'निराश' एसी  ज़िन्दगी  कब  तक कोई ग्वारा करे,
मौत   ने  भी    पीछा   छोड़   दिया  तेरे जाने के बाद।

- सुरेश भारद्वाज 'निराश' 
ए-58 न्यू धौलाधार कलोनी
लोअर बड़ोल पोस्ट दाड़ी धर्मशाला
जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
पिन 176057
सम्पर्क सूत्र : 9418823654

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

राजीव सक्सेना को किया गया 'हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान' से सम्मानित



हिन्दी साहित्य संगम का हिन्दी दिवस समारोह 


दिनाँक 13 सितम्बर, 2016 को हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम और रेड सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में कम्पनी बाग स्थित स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी भवन के सभागार में हिन्दी दिवस समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में सम्मान समारोह तथा काव्य-संध्या आयोजित की गई। जिसमे सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार श्री राजीव सक्सेना जी को बाल साहित्य के क्षेत्र में उनके समग्र योगदान के लिए ''हिन्दी साहित्य गौरव'' सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें मानपत्र, स्मृति चिन्ह, अंगवस्त्र और श्रीफल भेंट किया गया।



 कार्यक्रम का शुभारम्भ माँ शारदे के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित करके और कृष्ण कुमार नाज़ द्वारा सरस्वती वंदना से किया गया। इसके पश्चात कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार श्री बृजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' ने कहा कि वर्तमान युग विज्ञान का युग है और बाल विज्ञान के क्षेत्र में राजीव सक्सेना जी का साहित्य सृजन एक विशेष महत्व रखता है। बाल मनोविज्ञान पर केन्द्रित उनकी अनेक पुस्तकें साहित्य जगत में पर्याप्त चर्चित एवं पुरस्कृत हुई है।



           कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ० अजय अनुपम ने कहा कि हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष आता है और संस्थाएँ हिन्दी दिवस समारोह आयोजित करती हैं हिन्दी को लेकर भिन्न-भिन्न प्रकार की शपथ ली जाती हैं, भाषण दिए जाते हैं, लेकिन ये भाषण और शपथ हिन्दी दिवस के बाद कहीं गायब हो जाते हैं।  कारण यही है कि हम हिन्दी को अपने व्यवहार में नहीं ला पाते हैं। हिन्दी के विकास के लिए हमें हिन्दी को अपने कार्य व्यवहार में लाना होगा। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई ने कहा कि आज के इंटरनेट के समय में फेसबुक और व्हाटसएप  पर हिन्दी के साथ बहुत अत्याचार हो रहा है।  संदेश लिखते समय हिन्दी के शब्दों का संक्षेपीकरण किया जा रहा है जो कई बार अर्थ का अनर्थ भी कर देता है। युवा पीढ़ी को इससे बचना चाहिए।



 कार्यक्रम का संचालन योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया। इस मौके पर राजीव सक्सैना, रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ , जितेन्द्र कुमार जौली, राजीव प्रखर, हेमा तिवारी भट्ट, कृष्ण कुमार नाज, केपी सिंह सरल, आशु मुरादाबादी, विकास मुरादाबादी, फक्कड़ मुरादाबादी, अशोक विश्नोई, प्रदीप शर्मा, डा. मीना कौल, नकुल त्यागी, ब्रजेन्द्र सिंह वत्स, संयम वत्स मनु, राकेश चक्र, अतुल जौहरी, अम्बरीष गर्ग, यूपी सक्सेना, विवेक निर्मल आदि उपस्थित रहे।

सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

युवा स्वर - सौम्या मिश्रा की कविता :  माँ-बाप

माँ बाप

  

तनिक सोचो कि वो बूढ़े हाथ रोटी कैसे पकाते हैं।
जिनके बच्चे उनको खुद ही आश्रम छोड़ जाते हैं।।

कभी सोचा भी है कि हाल कैसा उनका होता होगा ।
जो देहरी अपनी कभी ना वापिस लौट कर आते हैं।।

मेरे सपनो में उन माँ-बाप की सूरत नजर आती है।
जो ठोकरों बाद भी बच्चों को प्यार से दुलराते हैं।

किस पाप की सजा उन माँ-बाप को दी जाती है।
जो बच्चे माँ बाप को इस तरह सताते हैं।।

क्या माँ बाप इसी दिन का सपना सजाते हैं।
होते बूढ़े माँ-बाप बच्चों पर भारी हो जाते हैं।।

जिन्होंने दुनिया में ला कर हमको अच्छा इंसान बनाया ।
अपनी सुविधा के खातिर हम उनको बेघर करवाते हैं।

ऐसे लोग कभी जीवन में सुखी नहीं रह पाते है ।
जो उन बूढ़े मात-पिता को वृद्धाश्रम भिजवाते हैं।।

आओ एक बीड़ा हम सब मिल कर उठाते है।
उन मात-पिता को फिर से उनका घर दिलवाते हैं।

- सौम्या मिश्रा 
तहसील फतेहपुर
जिला बाराबंकी ( उत्तर प्रदेश )

शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

विजय प्रकाश मिश्र 'विकल' की ग़ज़ल : बहुत ही याद आती है

बहुत ही याद आती है, छिपा भी अब नहीं सकता


बहुत ही याद आती है, छिपा भी अब नहीं सकता
बहुत कुछ अब जलाती है, बता भी अब नहीं सकता

मेरे एहसास से वाकिफ, कभी तुम हो नहीं सकते
छिपाया भी नहीं लेकिन, जता भी अब नहीं सकता

बहुत ही बार तुमको है, लगाया क्यों कलेजे से
कभी रोका नहीं था पर, लगा भी अब नहीं सकता

बहुत अरमान थे बेचैन, तुझे पाने की ख्वाहिश में
वो सोये तो नहीं थे पर, जगा भी अब नहीं सकता

कहाँ पर जख्म मारे है, किताबों के गुलाबों ने
वो रखे हैं वही पर मैं, हटा भी अब नहीं सकता

तेरे क़दमों में थे बिखरे, खतों के वो मेरे टुकड़े
फकत जिनको सजाया था, उठा भी अब नहीं सकता

कही कुछ तो कमी होगी, मेरी चाहत में ऐ दिलबर
निभा पाए न जो तुम वो, निभा मैं अब नहीं सकता

जुदाई में बहुत मजबूर सा, महसूस करता हूँ
है दिल रोकूँ तुम्हे लेकिन, बुला भी अब नहीं सकता ।


-विजय प्रकाश मिश्र 'विकल'
मोहल्ला : सराय सैफ, क़स्बा व पोस्ट- पाली,
 तहसील- सवायजपुर, जनपद- हरदोई (उ०प्र०)
 पिन कोड-241123
सम्पर्क सूत्र  : 9984194500

बुधवार, 31 अगस्त 2016

अशोक सिंह 'सत्यवीर की कविता :  क्या है जीवन ? 

क्या है जीवन ?


बार बार इक प्रश्न सुनें हम,
क्या है जीवन?
और हृदय में यही गुनें हम,
क्या है जीवन?।।1।।

जन्म लिया, फिर छोड़ दिया तन,
क्या है जीवन?
दूर हुए या जोड़ लिया मन,
क्या है जीवन?।।2।।

दु:ख अपनायें, सुखहित धायें,
क्या है जीवन?
हारें या खुद को समझायें,
क्या है जीवन?।।3।।

फिक्र छोड़ दें, हृदय जोड़ दें,
क्या है जीवन?
कटु रिश्तों को सहज तोड़ दें,
क्या है जीवन?।।4।।

परम्पराऐं सहज निभाऐं,
क्या है जीवन?
या अपना आदर्श बनाऐं,
क्या है जीवन?।।5।।

अब मन में निष्कर्ष आ रहा,
क्या है जीवन?
गलत किया जो त्रास नित सहा,
क्या है जीवन?।।6।।

सच में हृदय पुकार उठाऐ,
क्या है जीवन?
उसी हेतु सब नियम बनाए,
क्या है जीवन?।।7।।

- अशोक सिंह 'सत्यवीर'
693 ए , रामानंद नगर, अल्लापुर, 
इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश -211006
सम्पर्क सूत्र : 08303406738


Ashok Singh Satyaveer ki kavita : Kya hai jeewan

शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

राकेश चक्र के दोहे : माँ पूरा भूगोल


राकेश चक्र के दोहे : माँ पूरा भूगोल


माँ है मूरत प्रेम की, शीतल छाँव समीर।
खुद पीरों को सह गयी, है गंगा का नीर ।।

माँ की आँखों में सदा, बहे प्रेम का नीर।
आँचल में सुख छाँव है, दूर होय हर पीर।।

शिशु को सूखे में सुला, खुद गीले में सोय।
जाड़ा भी हैरान है, माँ जैसा न कोय।।

माँ सा प्रिय कोई नही, माँ का रखना ध्यान।
सुख का सागर है यही, देती जग का ज्ञान।।

माँ का ऋण कब उतरता, माँ है मंगल मूल।
माँ को सुख देना सदा, माँ है कोमल फूल।।

माँ है कोमल हृदय से, बोलो मीठे बोल।
सेवा कर तर जाइये, माँ पूरा भूगोल।।

- डाॅ० राकेश 'चक्र'
90 बी शिवपुरी,
मुरादाबाद 244001 (उ० प्र०)
सम्पर्क सूत्र : 9456201857

गुरुवार, 11 अगस्त 2016

हेमा तिवारी भट्ट की कविता

सब तेरे मन का हो, ऐसा मुमकिन तो नहीं


सब तेरे मन का हो,
ऐसा मुमकिन तो नहीं
रात तो रहेगी रात
होगा वह दिन तो नहीं|

गिन के तेरे पाप का,
बदला जो ले लेती है
सम्हलना ये वक्त कहीं,
जहरीली नागिन तो नहीं|

यूँ तो हर शख्स के,
अलेहदा ख्याल होते हैं
तू मुझसे इत्तफाक रखे
ये भी नामुमकिन तो नहीं|

 उम्र बढ़ती जाती है पर,
'मैं' से मिल न पाया हूँ
ढूँढू दर-बदर जिसको,
दिल में वो साकिन तो नहीं

गठरी गुनाह की तेरी,
तुझसे उठ न पायेगी
अभी समय है,देख ले
गलतियाँ अनगिन तो नहीं

- हेमा तिवारी भट्ट
खुशहालपुर, मुरादाबाद, (उ0 प्र0)
सम्पर्क सूत्र : 9720399413

मंगलवार, 9 अगस्त 2016

 पवन शर्मा "नीरज" की गज़ल



मिल के बिछड़न प्यार का दस्तूर हो गया


वो था करीब कितना मगर दूर हो गया
मिल के बिछड़न प्यार का दस्तूर हो गया।

अश्को से सींच कर लगाया प्यार शिजर
चली मुफलिसी की आँधी चकनाचूर हो गया।

हम करके वफा पे वफा गुमनाम ही रहे
वो करके बेवफाई भी मशहूर हो गया।

तारिफ मे जो पढ दिये दो चार कसीदे
ना चीज को भी हुस्न पे गुरूर हो गया ।

वो खुद के लिए देख मेरे इश्क का जूनून
बन्दा था सीधा साधा मगरूर हो गया।

कुछ पल के लिए यारो मै दूर क्या गया
माथे पे उसके गैर का सिन्दूर हो गया।

वैध हकीमो पे भी "नीरज" नही इलाज
वो जख्मे जुदाई यूँ नासूर हो गया ।




- पवन शर्मा"नीरज"
चौक मौहल्ला कामाँ 
भरतपुर राजस्थान
पिन  : 321022
मो0 :8742093262



नरेन्द्र मिश्रा की कविता : जब वक्त करवट लेता ह

जब वक्त करवट लेता है


सब कुछ बदल देता है..
     जब वक्त करवट लेता है..

वो शान, वो शौकत
वो कंगुरें... मीनारें ..
वो बाग, बगीचे
खुबसूरत नज़ारे
पल में मसल देता है
जब वक्त करवट लेता है...
     सब कुछ बदल देता है
          जब वक्त करवट लेता है...

कई शाह यूं झड़ गए
पुराने फूलों की तरह,
कई राज गुजर गए
जाते जुलूसों की तरह,
एक नया सबक देता है
जब वक्त करवट लेता है..
     सब कुछ बदल देता है
           जब वक्त करवट लेता है...

रुका है, जो कारवां
कल आगे बढेगा,
आ कर कोई और
तारीखें गढ़ेगा ,
आज को कल देता है
जब वक्त करवट लेता है...
     सब कुछ बदल देता है
           जब वक्त करवट लेता है...

ना रहूंगा मै यहां
ना वो, जो साथ है ,,
टिका रहे हमेशा
ये किसकी औकात है,,
हर कोई चल देता है
जब वक्त करवट लेता है...
     सब कुछ बदल देता है
          जब वक्त करवट लेता है...


- नरेन्द्र मिश्रा
पता: गांधी चौक, राजातालाब,
रायपुर, छत्तीसगढ़
पिन: 492001
फोन :9301831287

सोमवार, 8 अगस्त 2016

विजय कुमार पुरी का आलेख : "गुलेरी जी की कहानियां और उनका लोकजीवनात्मक आधार

गुलेरी जी की कहानियां और उनका लोकजीवनात्मक आधार


7 जुलाई 1883 को जन्मे श्री चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। गुलेरी जी बहुभाषाविद् थे, उनका पांडित्य असाधारण था। संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, मराठी, लेटिन, अंग्रेजी आदि भाषाओं पर उनका विशेषाधिकार तो था ही साथ ही मनोविज्ञान, दर्शन, पुरातत्व, इतिहास, संगीत आदि के क्षेत्र में भी उनका कोई सानी नहीं था। विषम परिस्थितियों में भी वे उदार ही रहते थे। सन् 1900 से लेकर जीवन पर्यन्त सरस्वती, इन्दु, वेश्योपकारक, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, मर्यादा, भारत मित्र, समालोचक आदि पत्रिकाओं में उनके लेख, निबंध, टिप्पणियाँ, कविताएँ, कहानियां आदि प्रकाशित होती रही हैं। यद्यपि उन्होंने भिन्न भिन्न विधाओं में लेखन किया है, किंतु सर्वाधिक प्रसिद्धि उन्हें कहानीकार के रूप ही मिली है। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि आम जनमानस कहानी पढ़ना ही अधिक पसन्द करता है, जबकि अन्य साहित्य आम आदमी के क्षेत्र से बाहर है। सम्यक अनुशीलन का प्रयास तो सभी करते हैं जबकि क्षेत्र विशेष में दक्षता रखने वाले उस विधा विशेष की समग्र चीरफाड़ कर उसके गुण अवगुण पाठकों अध्येताओं के समक्ष रखते हैं।

गुलेरी जी की कहानियां उन्हें हिन्दी साहित्य का ही नहीं, विश्व कहानी साहित्य में अमर कथाकार बना गयीं। उन्होंने कितनी कहानियां लिखीं हैं? इस सन्दर्भ में विद्वान एकमत नहीं हैं। 'सुखमय जीवन', 'बुद्धू का काँटा', 'उसने कहा था' के अलावा 'पनघट', 'हीरे का हीरा' भी गुलेरी की कहानियों के रूप में चर्चित होते रहे हैं। इसके अतिरिक्त डॉ विद्याधर गुलेरी ने 'दही की हंडिया', और 'भूखे का संघर्ष' भी उनकी रचित बताई हैं, पर साथ ही उन्होंने इन्हें अनुपलब्ध भी कह दी हैं।

 'पनघट' शीर्षक कहानी के सन्दर्भ में डॉ पीयूष गुलेरी ने कहा है,"हाँ उनकी एक अप्राप्य कहानी 'पनघट' की चर्चा काशी के पँ. राम लाल जी शास्त्री ने अवश्य की परन्तु वह उपलब्ध न हो सकी। उनका कहना है कि उन्होंने गुलेरी जी की 'पनघट' कहानी की पांडुलिपी भी देखी थी। परन्तु गुलेरी जी के देहांत के बाद उनके कागज पत्र इधर-उधर हो गए। बाद में 'गुलेरी जी की अमर कहानियाँ' के सम्पादन के समय उनके सुपुत्रों योगेश्वर गुलेरी और शक्ति धर गुलेरी के उसे ढूंढने के सब प्रयत्न विफल हुए।"  इसी कहानी के सन्दर्भ में डॉ मनोहर लाल ने भी श्री राम लाल शास्त्री से पत्र व्यवहार किया था। उनका हवाला देकर मनोहर लाल ने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में 'पनघट' का प्रसङ्ग उठाया तो विद्याधर ने 'आजकल' पत्रिका में लिखा,"पनघट 'बुद्धू का काँटा'  का हिस्सा न होकर स्वतन्त्र कथा है, जिसे राजकमल प्रकाशन से ही प्रकाशित गुलेरी ग्रन्थावली में समाविष्ट किया जा सकेगा।"  अर्थात 'बुद्धू का कांटा' में वर्णित पनघट प्रसङ्ग से भी इसे जोड़ा जाता रहा है। इस कहानी का अस्तित्व रहस्यमयी कन्दराओं में भटक रहा है।

'हीरे का हीरा' कहानी के सन्दर्भ में डॉ मनोहर लाल ने 'उसने कहा था तथा अन्य कहानियां' में लिखा है,"हीरे का हीरा" गुलेरी जी की चौथी कहानी है, उसकी खोज डॉ छोटा राम कुम्हार ने सन् 1980-81ईस्वी में गुलेरी जी के भाई पं. जगद्धर गुलेरी के घर उपलब्ध गुलेरी जी के कागज-पत्रों में से की थी। पत्रों के साथ 'हीरे का हीरा' कहानी भी मैंने सारिका को दी थी। सारिका सम्पादक ने कहा था कि दस्तावेज विशेषांक में छापेंगे, लेकिन न सारिका का वह अंक निकल और न ही गुलेरी जी से सम्बंधित किसी सामग्री के साथ वह अधूरी कहानी सारिका में छपी।" यद्यपि 1994 में श्री चन्द्रधर शर्मा गुलेरी को समर्पित रचना पत्रिका के गुलेरी विशेषांक में 'हीरे का हीरा' अपूर्ण कहानी को डॉ सुशील कुमार फुल्ल ने पूरा करके प्रकाशित किया था। इसी तरह फुल्ल साहब द्वारा पूर्ण की गई कहानी 6 सितम्बर 1987को जनसत्ता में प्रथमतः प्रकाशित हुई थी और नवनीत पत्रिका ने भी इसे प्रकाशित किया था। हिन्दी साहित्य के सुबोध इतिहास के परिशिष्ट तथा इंटरनेट में गुलेरी जी से सम्बन्धित सामग्री में भी इस कहानी को देखा जा सकता है। 'हीरे का हीरा' कहानी में गुलेरी जी 'उसने कहा था' कहानी के प्लाट को आगे बढ़ाते हुए दिखाई देते हैं। फर्क यही कि फ्रांस वेल्जियम की जगह युद्धभूमि चीन वर्णित है। पात्र अम्माँ, गुलाबदेई, हीरे(लहना सिंह) का पुत्र हीरा ही वर्णित हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या 'हीरे का हीरा' को उनकी चौथी कहानी माना जाए? जैसा कि प्रेम चन्द के अपूर्ण उपन्यास 'मंगलसूत्र' तथा जयशंकर प्रसाद के अपूर्ण उपन्यास 'इरावती'  को उन्हीं द्वारा रचित माना जाता है। अतः 'हीरे का हीरा' गुलेरी जी की चौथी कहानी माननी ही चाहिए।

किसी भी रचनाकार की रचनाओं में लोकजीवन को समेटे हुए कई पहलू आ जाते हैं। सहृदय, भावुक और कल्पनाशील होने के कारण रचनाकार जगत की अनुभूतियों को अपनी सम्वेदनाओं में समा लेता है। जिन घटनाओं से अन्य सामाजिक प्राणी कुछ क्षण ही द्रवित होते हैं। उन्हीं घटनाओं से साहित्यकार का मन तब तक उद्वेलित रहता है, जब तक वह उन घटनाओं को ताने-बाने में न बुन दे। अतः समाज की प्रत्येक हलचल साहित्य में समाहित होना अचम्भे की बात नहीं। इसी हलचल में लोकसंस्कृति और लोकजीवन के कई चित्र उन्हीं की भाषा में रचनाओं में आ जाते हैं।
 'हीरे का हीरा' कहानी का आरम्भ ही हमें हमारी लोक संस्कृति के दर्शन करवा जाता है। "आज सवेरे ही से गुलाबदेई काम में लगी हुई है। उसने अपने मिट्टी के घर के आँगन को गोबर से लीपा है, उसपर पीसे चावल से मंडन मांडे हैं। घर की देहली पर उसी चावल के आटे से लीके खेंची हैं और उन पर अक्षत और विल्व पत्र रखे हैं। दूब की नौ डालियाँ चुनकर कुलदेवी बनाई है और एक हरे पते के दोने में चावल भरकर उसे अंदर के घर में भीत के सहारे एक लकड़ी के देहरे में रखा है।" अर्थात इस तरह का पूजा विधान हिमाचल के अधिकांश घरों में देखा जा सकता है। मन्नत पूरी होने पर कुलजा पूजन भी अवश्य किया जाता है। पुराने समय में बकरा भी काटा जाता रहा है। स्थानीय हिमाचली कांगडी बोली में इसे जातर कहते हैं। 'जातर' के अवसर पर वर या वधू पक्ष के लोग अपने ग्रामवासियों, भाई-बान्धवों के साथ ढोल बाजे सहित देवस्थल की और प्रस्थान करते हैं। गांव की सोहागिन एवम् वरिष्ठ महिला चलीठा लेकर आगे आगे चलती हुई गोलाकार में अलपना लगाती है तथा कोई अन्य कन्या या सोहागिन लाल रंग के रोलिये से गोलाकार अलपने में बिंदु लगाती है। यूं तो ऐसी जातरें (देवयात्राएं) पूरा वर्ष चलती रहती हैं, किंतु नवसम्वतसर के प्रारंभ में इनकी अधिकता देखने में आती है। इस सन्दर्भ में वर्ष का प्रारम्भिक चैत्र मास विशेष रूप से शुभ माना जाता है। उपरोक्त सभी विवरण 'बुद्धू का कांटा' कहानी में स्थल-स्थल पर उनकी भाषा में सम्पुष्ट हुए हैं। "रघुनाथ का हृदय धुंए से घुट रहा था। विवाह के आते अवसर को वह उसी भाव से देख रहा था, जैसे चैत्र कृष्ण में बकरा आने वाले नवरात्रों को देखता है।" कई बार हिमाचली लोकजीवन में विवाहित होने वाले युवक को व्यंजनात्मक भाषा में 'बलिया दा बकरु' से भी अभिहित किया जाता है।
आज के युग में लड़का-लड़की विवाह पूर्व एक दूसरे को देख लेते हैं, किंतु पुरातन काल में जब बच्चों के विवाह सम्बंध माँ-बाप  द्वारा ही निर्धारित किए जाते थे तो ग्रामीण क्षेत्रों में विवाह वेदी में मुंह दिखाई रस्म प्रचलित थी, बल्कि आज भी है। विवाह की इस रीति-परम्परा के दर्शन 'बुद्धू का कांटा' कहानी में हो जाते हैं। "कन्यादान के पहले और पीछे वर-कन्या को, ऊपर एक दुशाला डालकर एक दूसरे का मुंह दिखाया जाता है। उस समय दूल्हा-दुल्हन जैसा व्यवहार करते हैं। उससे ही उनके भविष्य, दाम्पत्य सुख का थर्मामीटर मानने वाली स्त्रियां बहुत ध्यान से उस समय के दोनों के आकार-विकार को याद रखती हैं। " हिमाचली संस्कृति में इस लोकरीति को मुंहदृष्टा कहा जाता है।
 'उसने कहा था' कहानी में अमृतसर के बाजार का वर्णन करते हुए गुलेरी जी ने इक्के गाड़ी वालों के मुंह से जो वाक्यांश कहलवाये हैं, वे भी लोक आस्था का स्वरूप कहे जा सकते हैं। भीड़ भरे बाजार में बुजुर्ग महिलाओं के न हटने पर, "हट जा जीणे जोगिये, हट जा कर्मा वालिये, हट जा पुतरां प्यारिये,-----" भाषायी आधार पर लोकरीतियों को पुष्ट करते हैं। इसी तरह लोकजीवन में झाड़-फूंक, जंतर-मंतर, कोजागर पुर्णिमा, संयुक्त कुटुंब प्रणाली, विवाह पूर्व जन्मकुंडली-टेवे मिलान में जोड़-तोड़, ममता स्वरूप दूध पिलाने के बाद बच्चों को धूल की चुटकी चटाना, बुरी नजर से बचाने के लिए काला टिक लगाना आदि कई लोकरीति के प्रसङ्ग गुलेरी जी की कहानियों में भरे पढ़े हैं।

गुलेरी जी की कहानियों में जो लोकजीवनात्मक आधार सुदृढ़ता से अभिव्यंजित हुए हैं, वह कहानीकार की सिद्धहस्तता और कलात्मक कुशलता के परिचायक ही नहीं, बल्कि उनकी रगरग में रंजित लोकसंस्कृति के सच्चे स्वरूप का भी दिग्दर्शन करवाते हैं। गुलेरी जनजीवन की व्यथा-कथाओं को निकट से जानते थे और उन मुलभूत समस्याओं और कुरीतियों पर उन्होंने वैसी ही कलकल निनादिनी जनभाषा में साध-साध कर व्यंग्य वाण मारे हैं। वास्तव में गुलेरी जी समाज में क्रांतिकारी परिवर्तनों के हामी थे। उन्हें शत शत नमन।

-विजय कुमार पुरी 
ग्राम पदरा पोस्ट हंगलोह
तहसील पालमपुर  ज़िला कांगड़ा
हिमाचल प्रदेश।
176059
मोबाइल 09816181836
09736621307

वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी का गीत : मेरा नाम लिखेगा कौन ? 


मेरा नाम लिखेगा कौन ?


अपने दिल की दीवारों पर ,
मेरा नाम लिखेगा कौन  ?
भेद  भाव के तूफानों से ,
मेरे लिये लड़ेगा कौन  ?

भेद भाव के चिथड़े ओढ़े ,
जो  भी इज्जतदार बने  ,
आदर्शों का ढोंग रचाकर ,
खुशियों के हक़दार बने ,
ऐसे रावण का वध करने ,
मेरा राम बनेगा कौन  ?
अपने दिल की...............

मेरी खातिर कौन लड़ेगा ?
अपनों से बेगानों  से ,
छुआ छूत करने वाले इन ,
पाखंडी  हैवानों  से  ,
अपनी आँखों के दो आँसू ,
मेरे नाम करेगा कौन  ?
अपने दिल की................

पग पग पर मज़हब की कीलें ,
गढ़ी हुईं हैं राहों  में  ,
कैसे आगे बढ़ पाऊँगा  ?
बाँह डाल कर बाँहों में  ,
मेरे लिये प्यार की गागर ,
आठों याम भरेगा कौन  ?
अपने दिल की................

हैं ईश्वर का अंश एक ही ,
फ़िर इतनी नफ़रत क्यों है ?
दानव होकर ही धरती पर  ,
रहने की हसरत क्यों है  ?
सतत प्रेम की अभिलाषा को ,
पावन धाम करेगा कौन  ?
अपने दिल की..................

हरगिज़ भीख नहीँ माँगूँगा  ,
अपनी बात कहूँगा मैं  ,
क्या नफ़रत ही सर्व धर्म है ?
कब तक इसे सहूँगा  मैं ,
गले लगा कर मुझे मुक्ति का ,
पथ अभिराम करेगा कौन ?
अपने दिल की................


-वीरेंद्र  सिंह  ब्रजवासी 
मुरादाबाद  उत्तर प्रदेश 
सम्पर्क सूत्र : 09719275453

मंगलवार, 7 जून 2016

सुरेश भारद्वाज निराश की ग़ज़ल : झोंपड़े का दर्द

झोंपड़े का दर्द


झोंपड़े का दर्द बंगले की नींव में दफन हो गया,
सिसकियां,मज़बूरियां, चुभन आज कफन हो गया।

मैं तो ढूंढता   फिरा  हूँ शहर  में  एक सहारा,
आत्मीयता का एक बोल आज स्वपन हो गया।

सहरा में तलाश पानी की मृगतृष्णा बन गयी,
आत्महत्या ही जीने का अब प्रयत्न हो गया।

लिखा था हमने एक लम्बा संविधान यारो,
हर धारा पर डोलता आज वतन हो गया।

चादर से बाहर पसारना पैर अब छोड़ दो तुम
सच्चा  आज  कबीर  का  कथन  हो गया।

निराश मेरी जिन्दा लाश गली-गली भटकी,
देखने  वालों  का  अच्छा  जशन  हो गया।

-सुरेश भारद्वाज निराश
ए-58 न्यू धौलाधार कलोनी
लोअर बड़ोल पी.ओ. दाड़ी
धर्मशाला, जिला कांगड़ा (हि.प्र.)
सम्पर्क सूत्र : 9418823654

गुरुवार, 19 मई 2016

विजय कुमार पुरी का गीत :   "मुझको पीड़ा होती है"

"मुझको पीड़ा होती है"


सड़क हादसे पर माँ बेटी बहन जब रोती है।
मत पूछो कि मेरे मन में कितनी पीड़ा होती है।।

ये सन्तानें समझ न पाती
कितनी कीमत जीवन की
होश गंवाते जोश में रहते
कर तेज़ गति निज वाहन की

रेत ज्यों फिसले हाथों से, मौत न ऐसी होती है।
मत पूछो कि मेरे मन में कितनी पीड़ा होती है।।

घर वाले बेहाल हुए सब
ये घाव बड़ा दर्दीला है
बात हमारी न सुनता है
क्यों बेटा हुआ हठीला है

आती जाती लोक निगाहों से छुप आँखे रोती हैं।
मत पूछो कि मेरे मन में कितनी पीड़ा होती है।।

झुंझलाता मन आहत है तन
बच्चों  के  इस व्यवहार  से
जग वालों से सुनते  गाली
और कभी-कभी परिवार से

न सुनने की जो खा ली कसमें, सन्तान न ऐसी होती है।
मत पूछो कि मेरे मन में कितनी पीड़ा होती है।।

आसमान पिता सा ऊपर
बैठ  निहारा  करता है
बच्चों की गलती पर वह
नित फटकारा  करता है

फितरत आज के बच्चों की, क्यों ठग जाने की होती है।
मत पूछो कि मेरे मन को कितनी पीड़ा होती है।।

सुख सुविधाएं ले लीं सारी
और उनका ही उपभोग किया
मात पिता को देकर दुःख
जीवन भर का रोग दिया

माँ रूप में बहती गंगा, सब पापों को धोती है
मत पूछो कि मेरे मन में कितनी पीड़ा होती है।।

विजय कुमार  पुरी
पालमपुर, ज़िला कांगड़ा, 
हिमाचल प्रदेश 
सम्पर्क  सूत्र : 09736621307,
 09816181836

मंगलवार, 17 मई 2016

पवन शर्मा "नीरज" के मुक्तक


पवन शर्मा "नीरज`` के मुक्तक 



तेरी चाहत ने जाने जाँ बनाया मुझको दीवाना
बिना तेरे लगे इक पल मेरा मुश्किल है जी पाना
तेरी बस जूस्तजूँ मे जाने जाँ कुछ हाल है ऐसा
शमाँ बन तू जहाँ जलती मै बन आता हूँ परवाना।।

 ------------------------------
सफर मे साथ भी होते अगर तुम हमसफर होते
राहे काँटे भी सह लेते अगर तुम हमडगर होते
शमाँ रोशन भी कर देते जलाकर खुद को हम सनम
अगर राहे मौहब्बत मे बेवफा तुम नही होते।।
 ------------------------------
अगर तेरे इरादो से सनम वाकिफ जो हम होते
तो इन तीरे निगाहो से कभी घायल नही होते
बचा लेते अगर खुद को हवा-ए-इश्क से सनम
तो उठ उठ के यूँ रातो मे अक्सर हम नही रोते।।
 ------------------------------
कही बिजली चमकती है कही बादलगरजता है
कही सूखी जमीं बंजर कही सावन बरसता है
नही आता किसी को रास मौहब्बत का अफसाना
न जाने फिर भी क्यों इंसा मौहब्बत को तरसता है।।

- पवन शर्मा "नीरज"
चौक मौहल्ला कामाँ
भरतपुर राजस्थान :321022
मो0 :  8742093262

सोमवार, 16 मई 2016

डॉ. राकेश जोशी की ग़ज़ल : सारे लोग


सारे लोग 



बादल गरजे तो डरते हैं नए-पुराने सारे लोग
गाँव छोड़कर चले गए हैं कहाँ न जाने सारे लोग

खेत हमारे नहीं बिकेंगे औने-पौने दामों में
मिलकर आए हैं पेड़ों को यही बताने सारे लोग

मैंने जब-जब कहा वफ़ा और प्यार है धरती पर अब भी
नाम तुम्हारा लेकर आए मुझे चिढ़ाने सारे लोग

गाँव में इक दिन एक अँधेरा डरा रहा था जब सबको
खूब उजाला लेकर पहुँचे उसे भगाने सारे लोग

भूखे बच्चे, भीख माँगते कचरा बीन रहे लेकिन
नहीं निकलते इनका बचपन कभी बचाने सारे लोग

धरती पर खुद आग लगाकर भाग रहे जंगल-जंगल
ढूँढ रहे हैं मंगल पर अब नए ठिकाने सारे लोग

इनको भीड़ बने रहने की आदत है, ये याद रखो
अब आंदोलन में आए हैं समय बिताने सारे लोग

चिड़ियों के पंखों पर लिखकर आज कोई चिट्ठी भेजो
ऊब गए है वही पुराने सुनकर गाने सारे लोग


-डॉ. राकेश जोशी
असिस्टेंट प्रोफेसर (अंग्रेजी)
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय,
डोईवाला देहरादून, उत्तराखंड
फ़ोन: 08938010850
ईमेल: joshirpg@gmail.com

गुरुवार, 3 मार्च 2016

विनोद ध्रब्याल राही की कविता : आया रे ऋतुराज

आया रे ऋतुराज


आया रे ऋतुराज आया
शीत हटा, धूप सुहावनी लाया,

शाखाओं पर नवदल छाए
पुष्पों ने खूब रंग बिखराए,

अंबियन पर बौर पड़ा
बसंत आ द्वार खड़ा,

मंद सुगंध, शीतल वायु लाया
बसंत पंचमी, होली त्योहार आया,

पशु-पक्षी, सब प्राणी नवरक्त भरे
हुए सब खेत पीले-हरे,

बिखरी छटा मन भावन चहुँ ओर
नाच उठे वन-उपवन में मोर,

कोकिल गान तन-मन आग लगाए
भ्रमर गुंजन निर्मोही की याद दिलाए,

वीर हकीकत की याद लाया
पतंगों से नभ सारा छाया,

तरूण- तरुणियाँ सब नाची
इश्कमिजाज़ी की धूम मची,

आया रे, ऋतुराज आया
शीत हटा, धूप सुहावनी लाया|

-विनोद ध्रब्याल राही
बाघनी, नूरपुर (काँगड़ा) हि.प्र. 
सम्पर्क सूत्र : 09625966500

बुधवार, 2 मार्च 2016

गोपाल शर्मा की बाल कविता : नन्हे-फूल

बगिया के ये नन्हे फूल


बगिया के ये नन्हे-फूल,
चुभ न जायें इनको शूल।
सदा रहें ये हंसते-गाते,
खाते-पीते मौज उड़ते।
यह जीवन का है प्रभात,
छेड़़ो एकता की कोई बात।
छूए न कपट की काली रात,
क्रोध लगाये न छुप कर घात।
आशाओं के दीप हैं प्यारे,
वर्तमान की आँख के तारे।
सुन्दर तन और सुन्दर मन है,
उत्तम इन्हें प्रेम का धन है।
इनके बोलों में है मिठास,
झूठ नहीं है इनके पास।
भेदभाव को जान न पायें,
ऐसा इनको पाठ पढ़ायें।
नफरत की कहीं पड़े न धूल,
बगिया के ये नन्हे-फूल।

-गोपाल शर्मा,
जय मार्कीट ,
कांगड़ा,हि.प्र.।

रविवार, 28 फ़रवरी 2016

मनोज चौहान की कविता : वह दिन

मनोज चौहान की कविता : वह दिन


जीवन की आपाधापी से
लेकर कुछ पल उधार,
लौटता हूँ जब
गाँव के गलियारों में
जहाँ रहते हैं मेरे यार,
घेर लेती हैं मुझे वहां भी
कुछ नयी व्यस्ततायें
और जिम्मेदारियां l
बचपन के उन लंगोटिए दोस्तों से
मिल पाता हूँ सिर्फ
कुछ ही पल के लिए
वह भी तो होते हैं व्यस्त आखिर
अपनी - 2 जिम्मेदारियों
के निर्वहन में
इसीलिए नहीं करता शिकायत
किसी से भी l
सोचता हूँ कि सच में
कितने बेहतर थे वह दिन
बचपन से लेकर लड़कपन तक के
बेफिक्री के आलम में
निकल जाना घर से
और फिर लौट आना वैसे ही
हरफनमौलाओं की तरह
बेपरवाह l
जवानी की दहलीज पर
कदम रखते ही
हावी हो जाना उस जूनून का,
करना घंटों तक बातें
आदर्शवाद और क्रान्ति की,
आयोजित कर सभाएं, बैठकें
शामिल होना रैलियों में भी
बनाना योजनाएं
अर्धरात्रि तक जागकर
ताकि बदला जा सके समाज
और उसकी सोच को l
मेरे दोस्त आज भी
वही पुराने चेहरे हैं
मगर बक्त के रेले में
छिटक गए हैं हम सब
अपने - 2 कर्मपथ पर l
बेशक आ गया होगा फर्क
चाहे मामूली सा ही सही
हम सब के सोचने के तरीकों में
झुलसकर निज अनुभवों की
भठ्ठी की ऊष्मा से l
मगर वो मौलिक सोच यक़ीनन
आज भी जिन्दा है
कहीं ना कहीं
जो कर देती है उद्विगन
अंतर्मन को
और सुलगा जाती है अंगारे
बदलाब और क्रांति के लिए l.


-मनोज चौहान
पता : सेट नं.- 20, ब्लॉक नं.- 4,
 एस जे वी एन कॉलोनी दत्तनगर,
पो. दत्तनगर, तहसील : रामपुर बुशहर,
जिला – शिमला (हिमाचल प्रदेश) -172001
मोबाइल – 09418036526,
09857616326
ई - मेल : mc.mahadev@gmail.com
ब्लॉग : manojchauhan79.blogspot.com


बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

पंकज कुमार 'नुसरत' की ग़ज़ल : जान गवांकर बैठ गयी


ग़ज़ल : जान गवांकर बैठ गयी


जंगली लड़की फूलों का एक थाल सजाकर बैठ गयी,
दिल के अन्दर पिया मिलन की आस लगाकर बैठ गयी।

सब्ज सुनहरे फूल खिले है शाखों पे फुलवारी के,
उनके ऊपर मालन अपनी आँख गड़ाकर बैठ गयी।

होठ भी नीले आँख भी नीली हाथ भी सारे नीले है,
कितना सुन्दर रूप सपेरन आज बनाकर बैठ गयी।

भुखी नजरें जा पहुँची हैं बेवा के दरवाजे तक 
लेकिन बेवा घर के अंदर लाज बचाकर बैठ गयी।

उस लड़की के चेहरे पर भी उमीदों की लाली हैं,
सपनों के जो शहजादे से आँख लड़ाकर बैठ गयी।

फूँक दिया है सारा गुलशन नफ़रत की चिंगारी ने,
गन्दी सियासत इंसानो का खून बहाकर बैठ गयी।

अंग्रेजी से प्यार जताये दिल्ली के ये ठेकेदार,
हिंदी अपने देश के अन्दर जान गवांकर बैठ गयी।

उस औरत की नादारी पे "नुसरत" रोना आता है,
भूखे प्यासे बच्चों को जो घर मे सुलाकर बैठ गयी


                     
-पंकज कुमार 'नुसरत'
गाँव - थाना, पोस्ट - कुलताजपुर
तहसील - नारनौल महेन्द्रगढ़,
हरियाना, पिन कोड 123001
सम्पर्क सूत्र : 09813318730

 Er Pankaj Kumar Nusrat

रविवार, 7 फ़रवरी 2016

राजीव प्रखर का गीत : उठो साथियो, आज़ादी की जंग अभी भी जारी है l

उठो साथियो, आज़ादी की जंग अभी भी जारी है 


जात-पात और भेदभाव से अब लड़ने की बारी है,
उठो साथियो, आज़ादी की जंग अभी भी जारी है l

जिस आज़ादी की खातिर, वीरों ने फंदे चूमे थे,
सुनकर जिसके अमर तराने शीश करोड़ों झूमे थे l
जिसकी खातिर बैसाखी भी लहराती तलवार बनी,
बिन हाथों वाले भी लेकर विजय पताका घूमे थे l
वीरों की इस कुर्बानी पर, हंसता भ्रष्टाचारी है,
उठो साथियो आज़ादी की, जंग अभी भी जारी है l

कहने को कागज़ पर हम, अंग्रेज़ों से आजाद हुए ,
लेकिन आपस में लड़ लड़ कर, खुद ही यूं बर्बाद हुए l
बेशकीमती आज़ादी का, ऐसा सत्यानाश हुआ,
उजड़ रही है गौशालाएं, मयखाने आबाद हुए l 
नचा रहा बाहर से आकर, हमको एक मदारी है , 
उठो साथियो आज़ादी की, जंग अभी भी जारी है l

हिंदी की रोटी खाकर हम, अंग्रेज़ी की गाते हैं,
हिंदी की महिमा-गरिमा को, पिछड़ापन बतलाते हैं l
अंग्रेज़ी के आगे पीछे , चलना ऐसा भाता है , 
बना द्रौपदी हिंदी को हम, दु:शासन बन जाते हैं l
दासों जैसी सोच हमारी, खुद हम पर ही भारी है, 
उठो साथियो आज़ादी की जंग अभी भी जारी है l


-राजीव 'प्रखर'
निकट राधा कृष्ण मन्दिर, 
मौहल्ला डिप्टी गंज, 
मुरादाबाद (उ. प्र.)-244 001
सम्पर्क - 8941912642

शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

वीरेन्द्र शर्मा वीर की कविता : देश अभी आज़ाद नहीं 

वीरेन्द्र शर्मा वीर की कविता : देश अभी आज़ाद नहीं 


देश अभी आज़ाद नहीं 
क्योंकि 
हम अभी तक
मानसिक रूप से बीमार हैं

देश अभी आज़ाद नहीं 
क्योंकि 
किसी को अपनी 
क़ाबिलियत पर भरोसा नहीं
सब सोचते हैं
मेहनत से ज़्यादा उन्हें 
आरक्षण की दरकार है 

देश अभी आज़ाद नहीं
क्योंकि 
घर के भीतर ही
छुपे कई ग़द्दार हैं

देश अभी आज़ाद नहीं 
क्योंकि 
सुरक्षित नहीं कहीं
देश की बेटियाँ 

देश अभी आज़ाद नहीं 
क्योंकि 
अन्नदाता तो भूखा है
और बड़े लोग 
कूड़े के ढेर में फेंक रहे रोटियाँ 

देश अभी आज़ाद नहीं 
क्योंकि 
एक सौ कमरों के मकान में
अकेला सोता है तो
लाखों को फुटपाथ पर भी 
जगह नसीब नहीं

देश अभी आज़ाद नहीं 
क्योंकि 
अस्सी रूपये बिकता प्याज़ यहाँ 
और मात्र बत्तीस रूपये 
दैनिक वाला यहाँ ग़रीब नहीं


-वीरेन्द्र शर्मा वीर 
गाँव : पध्याड़ा, पोस्ट कोहाला
तहसील ज्वालामुखी 
ज़िला काँगड़ा ( हिमाचल प्रदेश )
सम्पर्क सूत्र : 94180 76175
ईमेल - sharma.virender85@gmail.com

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

 नवीन हलदूणवी की ग़ज़लः अपने संगी हुए पराए

 नवीन हलदूणवी की ग़ज़लः अपने संगी हुए पराए


अपने संगी हुए पराए ,
सच्चे मुद्दे कौन उठाए ?

भावों में हुड़दंग मचा है ,
आग लगी को कौन बुझाए ?

कहां गई चन्द्रोली - भगतें ,
डण्डू फिरता मुंह लटकाए ?

फिल्मीधुन का असर हुआ है ,
लोक-कथाएं कौन सुनाए ?

विद्वानों में खींचा - तानी ,
किसकी गलती कौन सुझाए ?

पैसे पीछे होड़ लगी है ,
कमजोरों को कौन बचाए ?

आज 'नवीन' बचे हैं कितने ,
जिनकी वाणी मन बहलाए ?

  -नवीन हलदूणवी
काव्य-कुंज -जसूर-176201,
जिला कांगड़ा , हिमाचल 
सम्पर्क सूत्र : 09418846773
ई-मेल : naveensushma1949@gmail.com

बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

सुरेश भारद्वाज 'निराश' की ग़ज़ल



ग़ज़ल


नज़र उठा के देख कुछ तो है,
अपना बना के देख कुछ तो है।

चाँद को यूं तड़पाना किसलिये,
चाँदनी में नहा के देख कुछ तो है।

घर की दहलीज़ पर पैर पड़े यारके,
ज़रा गले लगा के देख कुछ तो है।

लवों से पिलाई उस दिन साकी ने,
अब होश में आके देख कुछ तो है।

चाहत की चाह ने मार डाला था मुझे,
प्यार को आज़मा के देख कुछ तो है।

मौत का पैगाम लाया बोह मेरे लिये,
ज़रा मुसकरा के देख कुछ तो है।

आँधियां क्या चलीं खो गयीं मंजिलें
एक वार जाके देख कुछ तो है।

सारे घरोंदे मेरे जा मिले थे सागर में,
मीत फिर बना के देख कुछ तो है।

आँख तो फड़की थी बोह आये नहीं,
याद को भुला के देख कुछ तो है।

'निराश' तेरा जीना,अब जीना नही रहा,
मौत को समझा के देख कुछ तो है।


-सुरेश भारद्वाज 'निराश'
ए-58 नयू धौलाधार कलोनी
लोअर बड़ोल पी.ओ. दाड़ी
तहसील धर्मशाला जिला कांगड़ा (हि.प्र.)
सम्पर्क सूत्र : 09418823654

सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

पुस्तक परिचय- चन्दन वन सँवरें : ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग'



पुस्तक परिचय



कृति : चन्दन वन सँवरें (नवगीत-संग्रह)
सर्वाधिकार : प्रकाशनाधीन
रचनाकार : श्री ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग'
एम. एम. आई. जी. बी-22-23, रामगंगा विहार-1, मुरादाबाद - 244001 (उ.प्र.)
मोबाइल : 09837468890
संस्करण : प्रथम
प्रकाशन वर्ष : 2014-15
प्रतियाँ : 500
पृष्ठ : 112
मूल्य : 200 रुपये
प्रकाशक : पार्थ प्रकाशन् द्वारा एक्सप्रेशन्स, पार्थ ओवरसीज कैम्पस,
आकांक्षा ऑटोमोबाइल के पास,
राधाकृष्ण मन्दिर के सामने,
दिल्ली रोड, मुरादाबाद (उ.प्र.)
मोबाइल : 09837468890

Chandan Van Sanwaren 
by
Brajbhushan Singh Gautam 'Anurag'


गुरुवार, 28 जनवरी 2016

शिव अवतार 'सरस' की बाल कविता : जाड़ा

जाड़ा

जाड़ा जाड़ा जाड़ा जाड़ा
छः रितुओं मे सबसे गाढ़ा।

किट किट करते दाँत हमारे
लगता हम रट रहे पहाड़े
दिन छोटा पर रात बड़ी है
निर्धन की हालत बिगड़ी है
सन सन सन पवन चीरती दिल को
इस सर्दी ने किया कबाडा ।

खेल न पाते बाहर जाकर
सूरज भी चलता झुक झुक कर
धूप चॉदनी जैसी शीतल
हम बच्चों का हाल बिगाड़ा।

घर घर हरी भरी तरकारी
खिचडी पापड की तैयारी
गुड तिल तेल तली भुजिया संग
शकरकंद आलू सिंघाड़ा

चिप्स पकौड़ी गजक रेबड़ी
मूंगफली नमकीन कुरकुरी
मिली मौज मस्ती खाने की
इस सर्दी में किया जुगाड़ा।

-शिव अवतार 'सरस'
मालती नगर, डिप्टी गंज, मुरादाबाद (उ.प्र)
सम्पर्क सूत्र : : 9456032671, 9411970552

शनिवार, 23 जनवरी 2016

शकुंतला प्रकाश गुप्ता साहित्य विभूति सम्मान समारोह

शकुंतला प्रकाश गुप्ता साहित्य विभूति सम्मान समारोह


दिनांक 19 जनवरी 2016 को मानसरोवर कन्या इंटर कालेज, मुरादाबाद में मानसरोवर एजुकेशन फाउंडेशन द्वारा साहित्य और कला विभूति सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह का आयोजन फाउंडेशन की संस्थापिका व शिक्षाविद् स्व. शकुंतला प्रकाश गुप्ता की पुण्य स्मृति पर किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ बतौर अतिथि मौजूदा पुलिस उप महानिरीक्षक श्री ओंकार सिंह, वन संरक्षक कमलेश कुमार, संयुक्त शिक्षा निदेशकयोगेंद्र नाथ सिंह एवं विद्यालय प्रबंधक श्री ओमप्रकाश गुप्ता ने दीप प्रज्जवलन के साथ किया। तदुपरांत संगीतकार शिल्पी सक्सेना एवं राकेश कुमार ने सरस्वती वंदना एवं भजन प्रस्तुत कर शमा बांध दिया।



 श्री ओंकार सिंह, श्री कमलेश कुमार, श्री योगेंद्र नाथ सिंह एवं श्री ओमप्रकाश गुप्ता के कर-कमलों से संगीत के क्षेत्र में भातखंडे संगीत संस्थान, लखनऊ (उ.प्र.) से डॉ ऊषा बनर्जी, एमआईटी शिक्षण संस्थान, मुरादाबाद के संस्थापक शिक्षाविद् श्री आदर्श अग्रवाल,समाज सेवी श्री लक्ष्मण प्रसाद खन्ना, वेब पत्रिका पूर्वाभास के संपादक, साहित्यकार डॉ अवनीश सिंह चौहान एवं समाजसेवी श्री विचित्र शर्मा को 'शकुंतला प्रकाश गुप्ता साहित्य एवं कला विभूति सम्मान' से सम्मानित किया गया। साथ ही चित्रकला प्रतियोगिता में भाग लेने वाले विद्यालय के छात्र-छात्राएं को प्रशस्तिपत्र प्रदान किये गए। ये सम्मान पुलिस उप महानिरीक्षक श्री ओंकार सिंह, वन संरक्षक कमलेश कुमार, संयुक्तशिक्षा निदेशक योगेंद्र नाथ सिंह एवं विद्यालय प्रबंधक श्री ओमप्रकाश गुप्ता के कर कमलों से प्रदान किया गया। इस अवसर पर साहित्यकारों व कलाकारों ने अपनी कला व काव्य पाठ की प्रस्तुतियाँ दीं।



अपने उद्बोधन में सम्मानित व्यक्तित्वों को बधाई देते हुए पुलिस उप महानिरीक्षक श्री ओंकार सिंह ने कहा कि स्व शकुंतला प्रकाश गुप्ता की स्मृति में किया गया यह आयोजन अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे साहित्य, कला एवं संगीत के क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों को प्रोत्साहन मिलेगा। समाजसेवी लक्ष्मण प्रसाद खन्ना ने स्व शकुंतला प्रकाश गुप्ता की स्मृतियों को नमन करते हुए उनके जीवन से जुडी कुछ घटनाओं को जिक्र किया और सभी अतिथियों/आगंतुकों को कार्यक्रम में पधारने के लिए आभार व्यक्त किया। शब्दों के जादूगर बाबा संजीव आकांक्षी ने कहा कि यह विद्यालय परिवार एक लम्बे अरसे से इस महानगर में बेहतरीन कार्य कर रहा है, जिसकी जितनी प्रसंशा की जाय कम है। बड़े भाई जुगनू जादूगर जी ने कहा कि मेरी माताजी स्व शकुंतला प्रकाश गुप्ता जी मेरी प्रेरणाश्रोत रहीं हैं। इस कार्यक्रम के बहाने हम उन्हें याद तो करते ही हैं, उनके कृतित्व से छात्र छात्राओं को प्रेरणा भी मिलती है।

इस मौके पर विशिष्ट अतिथि वन संरक्षक श्री कमलेश कुमार, जेडी श्री योगेन्द्र नाथ सिंह, नागरिक सुरक्षा के सहायक उपनियंत्रक श्री ऋषि कुमार, आचार्य राजेश शर्मा, डॉ जगदीप कुमार, सुश्री रीता सिंह, श्री परवेन्द्र सिंह, श्री पंकज गुप्ता, श्री संतराम दास, डॉ दीपक राज गर्ग, श्री संजीव ठाकुर, डॉ हिमांशु यादव, डॉ बीएन के जौहरी, श्री अशोक अग्रवाल, श्री पंकज कुमार गुप्ता, श्री विनय कुमार गुप्ता, श्री राजीव विश्नोई, श्री उदय 'अस्त', डॉ. पूनम बंसल, श्री रामदत्त द्विवेदी, श्री रामेश्वर वशिष्ठ, श्री जितेंद्र कुमार जौली, श्री धवल दीक्षित, श्री डी डी गुप्ता, श्री अनुज गुप्ता एडवोकेट, श्री परविन्द्र सिंह, श्री ललित शेखावत, सुश्री सुनीता सिंघल एडवोकेट, श्री वी राज, श्री शोभित गुप्ता, श्री हर्षित गुप्ता, विद्यालय के छात्र-छात्राएं एवं स्टॉफ सहित अनेकों गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का संयोजन समाजसेवी श्री ओमप्रकाश गुप्ता और बेहतरीन संचालन डॉ अम्बरीश गर्ग ने किया।

गुरुवार, 21 जनवरी 2016

समीक्षा


आलेख

कहानी


हास्य व्यंग्य


बाल कविताएँ

हास्य कविताएँ


हाइकु


ग़ज़ल

कुण्डलिया


दोहे


मुक्तक

गीत


कविताएँ


नरेन्द्र मिश्रा का गीत : मुस्कुराना सीख लें

मुस्कुराना सीख लें


चलो आओ फिर
मुस्कुराना सीख लें...

छोटी है ज़िंदगी 
बड़ी है चाहतें, 
ख्वाब है बहुत 
कम है राहतें,
उन सपनों को अपना 
बनाना सीख लें... 
चलो आओ फिर
मुस्कुराना सीख लें...

हर कदम पर 
टोकती मुश्किलें, 
कदम कदम को 
रोकती मुश्किलें,
उन मुश्किलों के पार
जाना सीख लें...
चलो आओ फिर
मुस्कुराना सीख लें... 

ना तब था, 
ना अब है, 
यहां कौन अपना
कब है ?
इन अंजानों को अपना 
बनाना सीख लें...
चलो आओ फिर 
मुस्कुराना सीख लें...

रह गए अकेले
यूं बीच रास्ते,
ना रुका कोई
हमराह के वास्ते
एक एक ही सही,
कदम बढाना सीख लें...
चलो आओ फिर
मुस्कुराना सीख लें...

नरेन्द्र मिश्रा
रायपुर
सम्पर्क सूत्र : 93018 31287‬