बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

पंकज कुमार 'नुसरत' की ग़ज़ल : जान गवांकर बैठ गयी


ग़ज़ल : जान गवांकर बैठ गयी


जंगली लड़की फूलों का एक थाल सजाकर बैठ गयी,
दिल के अन्दर पिया मिलन की आस लगाकर बैठ गयी।

सब्ज सुनहरे फूल खिले है शाखों पे फुलवारी के,
उनके ऊपर मालन अपनी आँख गड़ाकर बैठ गयी।

होठ भी नीले आँख भी नीली हाथ भी सारे नीले है,
कितना सुन्दर रूप सपेरन आज बनाकर बैठ गयी।

भुखी नजरें जा पहुँची हैं बेवा के दरवाजे तक 
लेकिन बेवा घर के अंदर लाज बचाकर बैठ गयी।

उस लड़की के चेहरे पर भी उमीदों की लाली हैं,
सपनों के जो शहजादे से आँख लड़ाकर बैठ गयी।

फूँक दिया है सारा गुलशन नफ़रत की चिंगारी ने,
गन्दी सियासत इंसानो का खून बहाकर बैठ गयी।

अंग्रेजी से प्यार जताये दिल्ली के ये ठेकेदार,
हिंदी अपने देश के अन्दर जान गवांकर बैठ गयी।

उस औरत की नादारी पे "नुसरत" रोना आता है,
भूखे प्यासे बच्चों को जो घर मे सुलाकर बैठ गयी


                     
-पंकज कुमार 'नुसरत'
गाँव - थाना, पोस्ट - कुलताजपुर
तहसील - नारनौल महेन्द्रगढ़,
हरियाना, पिन कोड 123001
सम्पर्क सूत्र : 09813318730

 Er Pankaj Kumar Nusrat

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