शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

राकेश चक्र के दोहे : माँ पूरा भूगोल


राकेश चक्र के दोहे : माँ पूरा भूगोल


माँ है मूरत प्रेम की, शीतल छाँव समीर।
खुद पीरों को सह गयी, है गंगा का नीर ।।

माँ की आँखों में सदा, बहे प्रेम का नीर।
आँचल में सुख छाँव है, दूर होय हर पीर।।

शिशु को सूखे में सुला, खुद गीले में सोय।
जाड़ा भी हैरान है, माँ जैसा न कोय।।

माँ सा प्रिय कोई नही, माँ का रखना ध्यान।
सुख का सागर है यही, देती जग का ज्ञान।।

माँ का ऋण कब उतरता, माँ है मंगल मूल।
माँ को सुख देना सदा, माँ है कोमल फूल।।

माँ है कोमल हृदय से, बोलो मीठे बोल।
सेवा कर तर जाइये, माँ पूरा भूगोल।।

- डाॅ० राकेश 'चक्र'
90 बी शिवपुरी,
मुरादाबाद 244001 (उ० प्र०)
सम्पर्क सूत्र : 9456201857

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