मंगलवार, 31 जनवरी 2017

सुरेश भारद्वाज निराश की गज़ल : तन्हा बड़ी हैं रातें, सताया न कीजिये

तन्हा  बड़ी   हैं   रातें,  सताया न कीजिये


सपनों  में   आके   मेरे,  जाया  न कीजिये
तन्हा  बड़ी   हैं   रातें,  सताया न कीजिये।

तेरे  ही   ख्यालों   में,   जिन्दगी  वसर हुई,
दिल  तोड़   कर   मेरा,  जाया न कीजिये।

पर्वतों की  चोटियां भी बदली से ढक गयीं,
सावन में मीत  मुझको, रुलाया न कीजिये।

गीतों  में   तेरे  हमने  खुद   को डुबो दिया,
चलते इधर - ऊधर  गुनगुनाया न कीजिये।

जख्मों का दर्द अब , कुछ  और बढ़ गया है,
मरहम लगा के इनको सहलाया न कीजिये।

जुल्फें तुम्हारी  ऐसी बदली सावन के जैसी,
धूप  में   धोकर इन्हें  सुखाया  न  कीजिये।

तुम  हो  मेरी  पूजा  मेरी  अर्चना  हो  तुम,
मेरे   लिये  खुदा को  मनाया  न  कीजिये।

यारा अब तो चाँद भी जलने लगा है तुमसे,
चांदनी  में  बैठ   कर  नहाया  न  कीजिये।

देखा  है जब से  तुमको मर  चुके हैं हम तो,
नज़रें मिला कर हमको तड़पाया न कीजिये।

जी   नहीं  सकेंगे    बिन  तुम्हारे  अब  हम,
दांतों  में होंठ  लेकर मुस्काया  न  कीजिये।

इन्सां बदल गया है नीयत  की  है बात क्या,
गैरत बेगैरत बोलकर समझाया  न कीजिये।

पक्के घरों से  भी अब बस्तीं  नहीं  बस्तियां,
निराश घर अब  रेत के  बनाया  न कीजिये।

-सुरेश भारद्वाज 'निराश'
ए- 58 न्यू धौलाधार कलोनी
लोअर बड़ोल पी.ओ.दाड़ी
तहसील  धर्मशाला,
जिला कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)
सम्पर्क सूत्र  9418823654
                   9805385225
Email- nirashscb@gmail.com

गुरुवार, 19 जनवरी 2017

संजय वर्मा "दृष्टी "की कविता : क्या जिंदगी आधुनिक हो गई

क्या जिंदगी आधुनिक हो गई


क्या जिंदगी आधुनिक हो गई 

माँ अब नहीं देखती दीवार पर धुप आने का  समय 
अचार बनाने  में क्या मिलाया जाए  और कितना 
बूढ़े पग अब नहीं दबाए जाते अब क्यों 
क्या जिंदगी आधुनिक हो गई

चश्मे के  नम्बर कब बढ़ गए 
सुई में धागा नहीं डलता कांप रहे हाथ कोई मदद नहीं 
बूढ़ों को संग ले जाने में शर्म हुई पागल अब क्यों 
क्या जिंदगी आधुनिक हो गई

घर के पिछवाड़े से आती खांसी की आवाजें 
कोई सुध लेने वाला क्यों नहीं 
संयुक्त दीखते परिवार  मगर लगता अकेलापन 
कुछ खाने की लालसा मगर कहने में संकोच  क्यों   
क्या जिंदगी आधुनिक हो गई

बुजुर्गो का आशीर्वाद /सलाह /अनुभव पर लगा जंग 
भाग दौड़ भरी दुनिया में उनके पास बैठने का समय क्यों नहीं 
गुमसुम से बैठे पार्क में और अकेले जाते धार्मिक स्थान अब क्यों  
क्या जिंदगी आधुनिक हो गई

बुजुर्ग है तो रिश्ते है ,नाम है , पहचान है 
अगर बुजुर्ग नहीं तो बच्चों की  कहानियाँ बेजान है 
ख्याल ,आदर सम्मान को करने लगे नजर अंदाज अब क्यों  
क्या जिंदगी आधुनिक हो गई

-संजय वर्मा "दृष्टी "
125 शहीद भगत सिंह मार्ग 
मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश)
सम्पर्क सूत्र : 9893070756