है सूरज बादलों में पर तपन महसूस होती है
चला थोड़ा ही हूँ फिर भी थकन महसूस होती है
है सूरज बादलों में पर तपन महसूस होती है
नहीं मालूम उसने क्या छिपा रक्खा है आँखो में
मिली जब से ये नज़रे है चुभन महसूस होती है
यहाँ की अब मुझे आबो हवा अच्छी नहीं लगती
यहाँ से ले चलो मुझको घुटन महसूस होती है
दिया जबसे मुझे उसने सरे बाज़ार यूँ धोखा
कहीं भी देख कर उसको जलन महसूस होती है
बहुत बौना बना डाला जहाँ ने सोच को अपनी
हकीकत है जहाँ में अब उबन महसूस होती है
- सूर्य नारायण शूर
इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
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