रविवार, 30 अक्तूबर 2016

विनोद कुमार दवे का गीत : एक दीया ऐसा रोशन हो

एक दीया ऐसा रोशन हो


एक दीया ऐसा रोशन हो, जो द्वेष रूपी तम दूर करें
एक दीया ऐसा रोशन हो, जो मन के वैर भाव हरें।

कितनी राहों में अँधेरा
कितना दूर है सवेरा
अमावस ऐसी गहराई है
पूनम की रातें घबराई है
चाँद को कोई अपनी अंजुरी में क्षण भर रोक सके
एक दीया ऐसा रोशन हो, जो मन के वैर भाव हरे।

छाया का मतलब तो यही है
प्रकाश आस पास कहीं है
मत घबरा पथिक ये तिमिर देख कर
उजाले से बड़ा अंधकार नहीं है
आँखों से तम हट जाएगा, उज्ज्वल हृदय को रखें
एक दीया ऐसा रोशन हो, जो मन के वैर भाव हरे।

आँगन की तुलसी के चरणों में
पीपल के बूढ़े पेड़ तले
गंदी बस्तियों गरीब झोंपड़ों में
एक दीया तो हमसे जले
घर-घर रोशन हो जाए हम ऐसा कोई क़दम धरे
एक दीया ऐसा रोशन हो जो मन के वैर भाव हरे।

-विनोद कुमार दवे
206, बड़ी ब्रह्मपुरी मुकाम,
पोस्ट भाटून्द, जिला पाली
राजस्थान 306707
 सम्पर्क सूत्र : 9166280718
ईमेल = davevinod14@gmail.com

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2016

सुरेश भारद्वाज निराश की ग़ज़ल : हमने भी जीना छोड़ दिया तेरे जाने के बाद

हमने भी जीना छोड़  दिया  तेरे जाने के बाद


वेवजह खामोशी ने दिल तोड़ दिया तेरे जाने के बाद,
हमने    भी     जीना    छोड़  दिया  तेरे जाने के बाद।

आँखों की नमी आँसू बनकर यूं थी बहने लगी,
उसने   भी  मूँह    मोड़   लिया    तेरे जाने के बाद।

दर्द  की  झंकार    में    लगे    थे  जख्म नाचने,
रिश्तों   ने  भी  दामन    छोड़   दिया तेरे जाने के बाद।

चाहत की खोज़ में  दर  दर  भटके  थे यार  हम,
था नफरत  से   नाता  जोड़  लिया  तेरे जाने के बाद।

तन्हाई  ने  मार  डाला   बोह  मेरा  जिन्दा वजूद,
साँसों   ने  भी    दम   तोड़  दिया  तेरे जाने के बाद।

पग   डंडियाँ    रोने   लगीं  रास्तों  से कैसे मिलें,
कदमों   ने   भी   साथ    छोड़  दिया तेरे जाने के बाद।

'निराश' एसी  ज़िन्दगी  कब  तक कोई ग्वारा करे,
मौत   ने  भी    पीछा   छोड़   दिया  तेरे जाने के बाद।

- सुरेश भारद्वाज 'निराश' 
ए-58 न्यू धौलाधार कलोनी
लोअर बड़ोल पोस्ट दाड़ी धर्मशाला
जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
पिन 176057
सम्पर्क सूत्र : 9418823654

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

राजीव सक्सेना को किया गया 'हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान' से सम्मानित



हिन्दी साहित्य संगम का हिन्दी दिवस समारोह 


दिनाँक 13 सितम्बर, 2016 को हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम और रेड सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में कम्पनी बाग स्थित स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी भवन के सभागार में हिन्दी दिवस समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में सम्मान समारोह तथा काव्य-संध्या आयोजित की गई। जिसमे सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार श्री राजीव सक्सेना जी को बाल साहित्य के क्षेत्र में उनके समग्र योगदान के लिए ''हिन्दी साहित्य गौरव'' सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें मानपत्र, स्मृति चिन्ह, अंगवस्त्र और श्रीफल भेंट किया गया।



 कार्यक्रम का शुभारम्भ माँ शारदे के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलित करके और कृष्ण कुमार नाज़ द्वारा सरस्वती वंदना से किया गया। इसके पश्चात कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार श्री बृजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' ने कहा कि वर्तमान युग विज्ञान का युग है और बाल विज्ञान के क्षेत्र में राजीव सक्सेना जी का साहित्य सृजन एक विशेष महत्व रखता है। बाल मनोविज्ञान पर केन्द्रित उनकी अनेक पुस्तकें साहित्य जगत में पर्याप्त चर्चित एवं पुरस्कृत हुई है।



           कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ० अजय अनुपम ने कहा कि हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष आता है और संस्थाएँ हिन्दी दिवस समारोह आयोजित करती हैं हिन्दी को लेकर भिन्न-भिन्न प्रकार की शपथ ली जाती हैं, भाषण दिए जाते हैं, लेकिन ये भाषण और शपथ हिन्दी दिवस के बाद कहीं गायब हो जाते हैं।  कारण यही है कि हम हिन्दी को अपने व्यवहार में नहीं ला पाते हैं। हिन्दी के विकास के लिए हमें हिन्दी को अपने कार्य व्यवहार में लाना होगा। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई ने कहा कि आज के इंटरनेट के समय में फेसबुक और व्हाटसएप  पर हिन्दी के साथ बहुत अत्याचार हो रहा है।  संदेश लिखते समय हिन्दी के शब्दों का संक्षेपीकरण किया जा रहा है जो कई बार अर्थ का अनर्थ भी कर देता है। युवा पीढ़ी को इससे बचना चाहिए।



 कार्यक्रम का संचालन योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया। इस मौके पर राजीव सक्सैना, रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ , जितेन्द्र कुमार जौली, राजीव प्रखर, हेमा तिवारी भट्ट, कृष्ण कुमार नाज, केपी सिंह सरल, आशु मुरादाबादी, विकास मुरादाबादी, फक्कड़ मुरादाबादी, अशोक विश्नोई, प्रदीप शर्मा, डा. मीना कौल, नकुल त्यागी, ब्रजेन्द्र सिंह वत्स, संयम वत्स मनु, राकेश चक्र, अतुल जौहरी, अम्बरीष गर्ग, यूपी सक्सेना, विवेक निर्मल आदि उपस्थित रहे।

सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

युवा स्वर - सौम्या मिश्रा की कविता :  माँ-बाप

माँ बाप

  

तनिक सोचो कि वो बूढ़े हाथ रोटी कैसे पकाते हैं।
जिनके बच्चे उनको खुद ही आश्रम छोड़ जाते हैं।।

कभी सोचा भी है कि हाल कैसा उनका होता होगा ।
जो देहरी अपनी कभी ना वापिस लौट कर आते हैं।।

मेरे सपनो में उन माँ-बाप की सूरत नजर आती है।
जो ठोकरों बाद भी बच्चों को प्यार से दुलराते हैं।

किस पाप की सजा उन माँ-बाप को दी जाती है।
जो बच्चे माँ बाप को इस तरह सताते हैं।।

क्या माँ बाप इसी दिन का सपना सजाते हैं।
होते बूढ़े माँ-बाप बच्चों पर भारी हो जाते हैं।।

जिन्होंने दुनिया में ला कर हमको अच्छा इंसान बनाया ।
अपनी सुविधा के खातिर हम उनको बेघर करवाते हैं।

ऐसे लोग कभी जीवन में सुखी नहीं रह पाते है ।
जो उन बूढ़े मात-पिता को वृद्धाश्रम भिजवाते हैं।।

आओ एक बीड़ा हम सब मिल कर उठाते है।
उन मात-पिता को फिर से उनका घर दिलवाते हैं।

- सौम्या मिश्रा 
तहसील फतेहपुर
जिला बाराबंकी ( उत्तर प्रदेश )