सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

युवा स्वर - सौम्या मिश्रा की कविता :  माँ-बाप

माँ बाप

  

तनिक सोचो कि वो बूढ़े हाथ रोटी कैसे पकाते हैं।
जिनके बच्चे उनको खुद ही आश्रम छोड़ जाते हैं।।

कभी सोचा भी है कि हाल कैसा उनका होता होगा ।
जो देहरी अपनी कभी ना वापिस लौट कर आते हैं।।

मेरे सपनो में उन माँ-बाप की सूरत नजर आती है।
जो ठोकरों बाद भी बच्चों को प्यार से दुलराते हैं।

किस पाप की सजा उन माँ-बाप को दी जाती है।
जो बच्चे माँ बाप को इस तरह सताते हैं।।

क्या माँ बाप इसी दिन का सपना सजाते हैं।
होते बूढ़े माँ-बाप बच्चों पर भारी हो जाते हैं।।

जिन्होंने दुनिया में ला कर हमको अच्छा इंसान बनाया ।
अपनी सुविधा के खातिर हम उनको बेघर करवाते हैं।

ऐसे लोग कभी जीवन में सुखी नहीं रह पाते है ।
जो उन बूढ़े मात-पिता को वृद्धाश्रम भिजवाते हैं।।

आओ एक बीड़ा हम सब मिल कर उठाते है।
उन मात-पिता को फिर से उनका घर दिलवाते हैं।

- सौम्या मिश्रा 
तहसील फतेहपुर
जिला बाराबंकी ( उत्तर प्रदेश )

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर व मार्मिक रचना.
    बहुत बहुत बधाई सौम्या जी.

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  2. बहुत सुन्दर व मार्मिक रचना.
    बहुत बहुत बधाई सौम्या जी.

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  3. बहुत सुन्दर व मार्मिक रचना.
    बहुत बहुत बधाई सौम्या जी.

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  4. बहुत सुन्दर व मार्मिक रचना.
    बहुत बहुत बधाई सौम्या जी.

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