रविवार, 28 फ़रवरी 2016

मनोज चौहान की कविता : वह दिन

मनोज चौहान की कविता : वह दिन


जीवन की आपाधापी से
लेकर कुछ पल उधार,
लौटता हूँ जब
गाँव के गलियारों में
जहाँ रहते हैं मेरे यार,
घेर लेती हैं मुझे वहां भी
कुछ नयी व्यस्ततायें
और जिम्मेदारियां l
बचपन के उन लंगोटिए दोस्तों से
मिल पाता हूँ सिर्फ
कुछ ही पल के लिए
वह भी तो होते हैं व्यस्त आखिर
अपनी - 2 जिम्मेदारियों
के निर्वहन में
इसीलिए नहीं करता शिकायत
किसी से भी l
सोचता हूँ कि सच में
कितने बेहतर थे वह दिन
बचपन से लेकर लड़कपन तक के
बेफिक्री के आलम में
निकल जाना घर से
और फिर लौट आना वैसे ही
हरफनमौलाओं की तरह
बेपरवाह l
जवानी की दहलीज पर
कदम रखते ही
हावी हो जाना उस जूनून का,
करना घंटों तक बातें
आदर्शवाद और क्रान्ति की,
आयोजित कर सभाएं, बैठकें
शामिल होना रैलियों में भी
बनाना योजनाएं
अर्धरात्रि तक जागकर
ताकि बदला जा सके समाज
और उसकी सोच को l
मेरे दोस्त आज भी
वही पुराने चेहरे हैं
मगर बक्त के रेले में
छिटक गए हैं हम सब
अपने - 2 कर्मपथ पर l
बेशक आ गया होगा फर्क
चाहे मामूली सा ही सही
हम सब के सोचने के तरीकों में
झुलसकर निज अनुभवों की
भठ्ठी की ऊष्मा से l
मगर वो मौलिक सोच यक़ीनन
आज भी जिन्दा है
कहीं ना कहीं
जो कर देती है उद्विगन
अंतर्मन को
और सुलगा जाती है अंगारे
बदलाब और क्रांति के लिए l.


-मनोज चौहान
पता : सेट नं.- 20, ब्लॉक नं.- 4,
 एस जे वी एन कॉलोनी दत्तनगर,
पो. दत्तनगर, तहसील : रामपुर बुशहर,
जिला – शिमला (हिमाचल प्रदेश) -172001
मोबाइल – 09418036526,
09857616326
ई - मेल : mc.mahadev@gmail.com
ब्लॉग : manojchauhan79.blogspot.com


बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

पंकज कुमार 'नुसरत' की ग़ज़ल : जान गवांकर बैठ गयी


ग़ज़ल : जान गवांकर बैठ गयी


जंगली लड़की फूलों का एक थाल सजाकर बैठ गयी,
दिल के अन्दर पिया मिलन की आस लगाकर बैठ गयी।

सब्ज सुनहरे फूल खिले है शाखों पे फुलवारी के,
उनके ऊपर मालन अपनी आँख गड़ाकर बैठ गयी।

होठ भी नीले आँख भी नीली हाथ भी सारे नीले है,
कितना सुन्दर रूप सपेरन आज बनाकर बैठ गयी।

भुखी नजरें जा पहुँची हैं बेवा के दरवाजे तक 
लेकिन बेवा घर के अंदर लाज बचाकर बैठ गयी।

उस लड़की के चेहरे पर भी उमीदों की लाली हैं,
सपनों के जो शहजादे से आँख लड़ाकर बैठ गयी।

फूँक दिया है सारा गुलशन नफ़रत की चिंगारी ने,
गन्दी सियासत इंसानो का खून बहाकर बैठ गयी।

अंग्रेजी से प्यार जताये दिल्ली के ये ठेकेदार,
हिंदी अपने देश के अन्दर जान गवांकर बैठ गयी।

उस औरत की नादारी पे "नुसरत" रोना आता है,
भूखे प्यासे बच्चों को जो घर मे सुलाकर बैठ गयी


                     
-पंकज कुमार 'नुसरत'
गाँव - थाना, पोस्ट - कुलताजपुर
तहसील - नारनौल महेन्द्रगढ़,
हरियाना, पिन कोड 123001
सम्पर्क सूत्र : 09813318730

 Er Pankaj Kumar Nusrat

रविवार, 7 फ़रवरी 2016

राजीव प्रखर का गीत : उठो साथियो, आज़ादी की जंग अभी भी जारी है l

उठो साथियो, आज़ादी की जंग अभी भी जारी है 


जात-पात और भेदभाव से अब लड़ने की बारी है,
उठो साथियो, आज़ादी की जंग अभी भी जारी है l

जिस आज़ादी की खातिर, वीरों ने फंदे चूमे थे,
सुनकर जिसके अमर तराने शीश करोड़ों झूमे थे l
जिसकी खातिर बैसाखी भी लहराती तलवार बनी,
बिन हाथों वाले भी लेकर विजय पताका घूमे थे l
वीरों की इस कुर्बानी पर, हंसता भ्रष्टाचारी है,
उठो साथियो आज़ादी की, जंग अभी भी जारी है l

कहने को कागज़ पर हम, अंग्रेज़ों से आजाद हुए ,
लेकिन आपस में लड़ लड़ कर, खुद ही यूं बर्बाद हुए l
बेशकीमती आज़ादी का, ऐसा सत्यानाश हुआ,
उजड़ रही है गौशालाएं, मयखाने आबाद हुए l 
नचा रहा बाहर से आकर, हमको एक मदारी है , 
उठो साथियो आज़ादी की, जंग अभी भी जारी है l

हिंदी की रोटी खाकर हम, अंग्रेज़ी की गाते हैं,
हिंदी की महिमा-गरिमा को, पिछड़ापन बतलाते हैं l
अंग्रेज़ी के आगे पीछे , चलना ऐसा भाता है , 
बना द्रौपदी हिंदी को हम, दु:शासन बन जाते हैं l
दासों जैसी सोच हमारी, खुद हम पर ही भारी है, 
उठो साथियो आज़ादी की जंग अभी भी जारी है l


-राजीव 'प्रखर'
निकट राधा कृष्ण मन्दिर, 
मौहल्ला डिप्टी गंज, 
मुरादाबाद (उ. प्र.)-244 001
सम्पर्क - 8941912642

शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

वीरेन्द्र शर्मा वीर की कविता : देश अभी आज़ाद नहीं 

वीरेन्द्र शर्मा वीर की कविता : देश अभी आज़ाद नहीं 


देश अभी आज़ाद नहीं 
क्योंकि 
हम अभी तक
मानसिक रूप से बीमार हैं

देश अभी आज़ाद नहीं 
क्योंकि 
किसी को अपनी 
क़ाबिलियत पर भरोसा नहीं
सब सोचते हैं
मेहनत से ज़्यादा उन्हें 
आरक्षण की दरकार है 

देश अभी आज़ाद नहीं
क्योंकि 
घर के भीतर ही
छुपे कई ग़द्दार हैं

देश अभी आज़ाद नहीं 
क्योंकि 
सुरक्षित नहीं कहीं
देश की बेटियाँ 

देश अभी आज़ाद नहीं 
क्योंकि 
अन्नदाता तो भूखा है
और बड़े लोग 
कूड़े के ढेर में फेंक रहे रोटियाँ 

देश अभी आज़ाद नहीं 
क्योंकि 
एक सौ कमरों के मकान में
अकेला सोता है तो
लाखों को फुटपाथ पर भी 
जगह नसीब नहीं

देश अभी आज़ाद नहीं 
क्योंकि 
अस्सी रूपये बिकता प्याज़ यहाँ 
और मात्र बत्तीस रूपये 
दैनिक वाला यहाँ ग़रीब नहीं


-वीरेन्द्र शर्मा वीर 
गाँव : पध्याड़ा, पोस्ट कोहाला
तहसील ज्वालामुखी 
ज़िला काँगड़ा ( हिमाचल प्रदेश )
सम्पर्क सूत्र : 94180 76175
ईमेल - sharma.virender85@gmail.com

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

 नवीन हलदूणवी की ग़ज़लः अपने संगी हुए पराए

 नवीन हलदूणवी की ग़ज़लः अपने संगी हुए पराए


अपने संगी हुए पराए ,
सच्चे मुद्दे कौन उठाए ?

भावों में हुड़दंग मचा है ,
आग लगी को कौन बुझाए ?

कहां गई चन्द्रोली - भगतें ,
डण्डू फिरता मुंह लटकाए ?

फिल्मीधुन का असर हुआ है ,
लोक-कथाएं कौन सुनाए ?

विद्वानों में खींचा - तानी ,
किसकी गलती कौन सुझाए ?

पैसे पीछे होड़ लगी है ,
कमजोरों को कौन बचाए ?

आज 'नवीन' बचे हैं कितने ,
जिनकी वाणी मन बहलाए ?

  -नवीन हलदूणवी
काव्य-कुंज -जसूर-176201,
जिला कांगड़ा , हिमाचल 
सम्पर्क सूत्र : 09418846773
ई-मेल : naveensushma1949@gmail.com

बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

सुरेश भारद्वाज 'निराश' की ग़ज़ल



ग़ज़ल


नज़र उठा के देख कुछ तो है,
अपना बना के देख कुछ तो है।

चाँद को यूं तड़पाना किसलिये,
चाँदनी में नहा के देख कुछ तो है।

घर की दहलीज़ पर पैर पड़े यारके,
ज़रा गले लगा के देख कुछ तो है।

लवों से पिलाई उस दिन साकी ने,
अब होश में आके देख कुछ तो है।

चाहत की चाह ने मार डाला था मुझे,
प्यार को आज़मा के देख कुछ तो है।

मौत का पैगाम लाया बोह मेरे लिये,
ज़रा मुसकरा के देख कुछ तो है।

आँधियां क्या चलीं खो गयीं मंजिलें
एक वार जाके देख कुछ तो है।

सारे घरोंदे मेरे जा मिले थे सागर में,
मीत फिर बना के देख कुछ तो है।

आँख तो फड़की थी बोह आये नहीं,
याद को भुला के देख कुछ तो है।

'निराश' तेरा जीना,अब जीना नही रहा,
मौत को समझा के देख कुछ तो है।


-सुरेश भारद्वाज 'निराश'
ए-58 नयू धौलाधार कलोनी
लोअर बड़ोल पी.ओ. दाड़ी
तहसील धर्मशाला जिला कांगड़ा (हि.प्र.)
सम्पर्क सूत्र : 09418823654

सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

पुस्तक परिचय- चन्दन वन सँवरें : ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग'



पुस्तक परिचय



कृति : चन्दन वन सँवरें (नवगीत-संग्रह)
सर्वाधिकार : प्रकाशनाधीन
रचनाकार : श्री ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग'
एम. एम. आई. जी. बी-22-23, रामगंगा विहार-1, मुरादाबाद - 244001 (उ.प्र.)
मोबाइल : 09837468890
संस्करण : प्रथम
प्रकाशन वर्ष : 2014-15
प्रतियाँ : 500
पृष्ठ : 112
मूल्य : 200 रुपये
प्रकाशक : पार्थ प्रकाशन् द्वारा एक्सप्रेशन्स, पार्थ ओवरसीज कैम्पस,
आकांक्षा ऑटोमोबाइल के पास,
राधाकृष्ण मन्दिर के सामने,
दिल्ली रोड, मुरादाबाद (उ.प्र.)
मोबाइल : 09837468890

Chandan Van Sanwaren 
by
Brajbhushan Singh Gautam 'Anurag'