ग़ज़ल
नज़र उठा के देख कुछ तो है,
अपना बना के देख कुछ तो है।
चाँद को यूं तड़पाना किसलिये,
चाँदनी में नहा के देख कुछ तो है।
घर की दहलीज़ पर पैर पड़े यारके,
ज़रा गले लगा के देख कुछ तो है।
लवों से पिलाई उस दिन साकी ने,
अब होश में आके देख कुछ तो है।
चाहत की चाह ने मार डाला था मुझे,
प्यार को आज़मा के देख कुछ तो है।
मौत का पैगाम लाया बोह मेरे लिये,
ज़रा मुसकरा के देख कुछ तो है।
आँधियां क्या चलीं खो गयीं मंजिलें
एक वार जाके देख कुछ तो है।
सारे घरोंदे मेरे जा मिले थे सागर में,
मीत फिर बना के देख कुछ तो है।
आँख तो फड़की थी बोह आये नहीं,
याद को भुला के देख कुछ तो है।
'निराश' तेरा जीना,अब जीना नही रहा,
मौत को समझा के देख कुछ तो है।
-सुरेश भारद्वाज 'निराश'
ए-58 नयू धौलाधार कलोनी
लोअर बड़ोल पी.ओ. दाड़ी
तहसील धर्मशाला जिला कांगड़ा (हि.प्र.)
सम्पर्क सूत्र : 09418823654
सुंदर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंसुंदर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ग़ज़ल निराश सर .....बधाई ...!
हटाएंगजल पढकर कोई निराश नहीं होगा, बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंगजल पढकर कोई निराश नहीं होगा, बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसबका बहुत आभार राही जी मनोज चौहान जी, गोविन्द सरन मुसाफिर जी।
जवाब देंहटाएंसबका बहुत आभार राही जी मनोज चौहान जी, गोविन्द सरन मुसाफिर जी।
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