सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

मोहित कुमार शर्मा की गज़ल : ज़िन्दगी भर हम दर्द की ही पनाहों में रहे..

ज़िन्दगी भर हम दर्द की ही पनाहों में रहे..


यूं तो तुम सारे जमाने की निगाहों में रहे..
पर मेरी ये बेबसी कि मेरी आहों में रहे..

क्यों भला तेरी खुमारी सर से जाती ही नहीं...
जबकि है मालूम के तुम किसकी बाहों में रहे...

मेरे जिन भावों की मंजिल था तुम्हारा दिल ऐ यार...
क्या वजाह कि आज तक वो सिर्फ राहों में रहे..

बेबफाई भी तुम्हारी,बेगुनाह भी तुम रहे...
हम वफ़ा करके भी जीवन भर गुनाहों में रहे..

साथ शायर का खुशी ने पल दो पल को दे दिया....
ज़िन्दगी भर हम दर्द की ही पनाहों में रहे..


- मोहित कुमार शर्मा
ग्राम व पोस्ट-पेपल, तहसील -बिसौली, 
जिला -  बदायूँ (उ.प्र.)
पिन कोड - 243725
सम्पर्क सूत्र: 9045346924
Email id- kavimohit3@gmail.com

सूर्य नारायण सूर का गीत : सब पैसे का खेल है बाबू

सब पैसे का खेल है बाबू


सब पैसे का खेल है बाबू  सब पैसे का खेल ।
पैसे खातिर बन जाती है खड़ी पैसेंजर मेल।।

खूनी कातिल के आगे सिर यहाँ झुकाता शासन ।
जिन्हें चाहिए जेल मे सड़ना उनको मिलता सिंहासन ।
पाकिट मारा पेट के खातिर पर जा पहुँचा जेल ।।

जिसने कभी किसी की इज्जत को न इज्जत समझा।
तुली है दुनिया आज उसी को ठहराने पर अच्छा ।।
इसी के कारण सीधा सादा होता हरदम फेल।।

तिकड़म से ही चम्बल वासी पहुँच गये हैं दिल्ली ।
वहाँ  पहुँच कर देश भक्त की उड़ा रहे हैं खिल्ली ।।
अनपढ़ फाइनल बाच रहा है शिक्षित बेचे तेल।।
-सूर्य नारायण शूर 
इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश 
सम्पर्क सूत्र : 9452816164

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

पुस्तक समीक्षा: स्पंदन

वर्तमान सामाजिक परिवेश को साकार करती कृति - 'स्पंदन'
-समीक्षक : राजीव 'प्रखर


      सामाजिक सरोकारों एवं समस्याओं से जुड़ी कृतियाँ सदैव से ही साहित्य का महत्वपूर्ण अंग रही हैं। वरिष्ठ रचनाकार श्री अशोक विश्नोई की उत्कृष्ट लेखनी से निकली 'स्पंदन' ऐसी ही उल्लेखनीय कृतियों में से एक है। जीवन के विभिन्न आयामों को सामने रखती, कुल 124 सुंदर गद्य-रचनाओं से सजी इस कृति में रचनाकार ने, अपनी सशक्त  लेखनी का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किया है। 

       गद्य-कृति के प्रारम्भ में कृति रचियता, श्री अशोक विश्नोई के उत्कृष्ट व्यक्तित्व एवं कृतित्व का समर्थन करते हुए, डॉ० प्रेमवती उपाध्याय, डॉ० महेश दिवाकर,  श्री शिशुपाल 'मधुकर' एवं श्री विवेक 'निर्मल' जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों के सुंदर व सारगर्भित उद्बोधन मिलते हैं। तत्पश्चात्, सुंदर गद्य-रचनाओं का क्रम आरंभ होता है। वैसे तो कृति की समस्त रचनाएं समाज में व्याप्त विद्रूपताओं का साकार चित्र प्रस्तुत करती है परन्तु, कुछ रचनाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय  हैं। उदाहरण के लिये, पृष्ठ 31 पर उपलब्ध रचना, "लाओ कलम और काग़ज़, पर लिखो.......", समाज में व्याप्त अन्याय और शोषण को पूरी तरह सामने रख रही है। वहीं पृष्ठ 33 पर उपलब्ध रचना के माध्यम से, रचनाकार कलुषित राजनीति पर कड़ा प्रहार करता है। रचना की अंतिम पंक्तियाँ देखिये - "............. श्री नेताजी की मृत्यु का समाचार ग़लत प्रकाशित हो गया था, वह अभी ज़िन्दा हैं इसका हमें खेद है।" इसी क्रम में पृष्ठ 39 की रचना गन्दी राजनीति से दूर रहने की स्पष्ट सलाह देती है। पृष्ठ 48 पर राष्ट्रभाषा हिन्दी को समर्पित रचना की पंक्तियाँ - "मैंने, प्रत्येक भाषा की पुस्तक को पढ़ा महत्वपूर्ण शब्दों को रेखांकित किया......", सहज रूप से राष्ट्रभाषा की महिमा-गरिमा को व्यक्त कर देती है। कुल 124 बड़ी एवं छोटी गद्य-कविताओं से सजी यह कृति अंततः, पृष्ठ 133 पर पूर्णता को प्राप्त होती है। हार-जीत के द्वंद्व को दर्शाती इस अन्तिम रचना की प्रारम्भिक पंक्तियाँ देखें - "मैं हारा नहीं हूँ क्यों हारूँ, हारना भी नहीं चाहता.... ‌‌"। इस अन्तिम रचना के पश्चात्, रचनाकार का विस्तृत  साहित्यिक-परिचय कृति की गुणवत्ता को ऊंचाइयाँ प्रदान कर रहा है। यद्यपि रचनाओं पर शीर्षकों का न होना अखरता है परन्तु, कृति निश्चित रूप से पठन-पाठन व चिंतन-मनन के योग्य है। 
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि, आकर्षक सजिल्द-स्वरूप में छपकर तथा रचनाकार की उत्कृष्ट लेखनी एवं विश्व पुस्तक प्रकाशन जैसे उच्च स्तरीय प्रकाशन-संस्थान से होकर, एक ऐसी कृति समाज को उपलब्ध हुयी है, जो विभिन्न सामाजिक समस्याओं को न केवल साकार रूप में साहित्य-प्रेमियों के सम्मुख उपस्थित करती है अपितु, अप्रत्यक्ष रूप से उसका समाधान भी प्रस्तुत करती है, जिसके लिए रचनाकार एवं प्रकाशन संस्थान दोनों ही, बहुत-बहुत साधुवाद के पात्र हैं।

कृति का नाम - स्पंदन 
रचनाकार - अशोक विश्नोई
प्रकाशक - विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली। 
प्रकाशन वर्ष - 2018
कुल पृष्ठ - 128
मूल्य ₹150/- मात्र