मंगलवार, 5 दिसंबर 2017

राजेश पुरोहित की गजल : गरीबों में ईश्वर जिसने खोजा है

गरीबों में ईश्वर जिसने खोजा है


गरीबों में ईश्वर जिसने खोजा है।
असल में वहीं करतार रहता है।।

योजनाओं का लाभ मिले उन्हें।
जो असल में हकदार रहता है।।

मेरे शहर में डेंगू ने पैर पसारे है।
हर कोई अब  बीमार रहता है।।

घरों में अपनत्व नहीं रहा जबसे।
हर कोई यहाँ  लाचार रहता है।।

करूँ किस तरह प्यार की बातें।
करना जिसमें इजहार रहता है।।

मतलब परस्ती में जो जीते यहाँ।
मेरी नज़र में धिक्कार रहता है।।

वतन की खा राग दुश्मन के गाते।
वो शख्स अक्सर गद्दार रहता है।।

पाक तेरी हरकत घिनोनी होती है।
तेरे भीतर छुपा मक्कार रहता है।।

बुजुर्गों की जहां खिदमत होती है।
"पुरोहित "वही  परिवार रहता है।।


-राजेश पुरोहित 
श्रीराम कॉलोनी भवानीमंडी, 
जिला झालावाड़, राजस्थान 
पिन 326502 
सम्पर्क सूत्र : 07073318074
ई-मेल : 123rkpurohit@,gmail.com

सोमवार, 4 दिसंबर 2017

चन्द्रेश कुमार छतलानी की लघु कथा : विरोध का सच

लघुकथा : विरोध का सच


"अंग्रेजी नववर्ष नहीं मनेगा....देश का धर्म नहीं बदलेगा..." जुलूस पूरे जोश में था। देखते ही मालूम हो रहा था कि उनका उद्देश्य देशप्रेम और स्वदेशी के प्रति जागरूकता फैलाना है| वहीँ से एक राष्ट्रभक्त गुज़र रहा था, जुलूस को देख कर वो भी उनके साथ मिल कर नारे लगाते हुए चलने लगा।

उसके साथ के दो व्यक्ति बातें कर रहे थे,

"बच्चे को इस वर्ष विद्यालय में प्रवेश दिलाना है। कौन सा ठीक रहेगा?"

"यदि अच्छा भविष्य चाहिये तो शहर के सबसे अच्छे अंग्रेजी स्कूल में दाखिला दिलवा दो।"


उसने उन्हें तिरस्कारपूर्वक देखा और नारे लगाता हुआ आगे बढ़ गया, वहां भी दो व्यक्तयों की बातें सुनीं,

"शाम का प्रोग्राम तो पक्का है?"

"हाँ! मैं स्कॉच लाऊंगा, चाइनीज़ और कोल्डड्रिंक की जिम्मेदारी तेरी।"

उसे क्रोध आ गया, वो और जोर से नारे लगाता हुआ आगे बढ़ गया, वहां उसे फुसफुसाहट सुनाईं दीं,

"बेटी नयी जींस की रट लगाये हुए है, सोच रहा हूँ कि..."

"तो क्या आजकल के बच्चों को ओल्ड फेशन सलवार-कुर्ता पहनाओगे?"

वो हड़बड़ा गया, अब वो सबसे आगे पहुँच गया था, जहाँ खादी पहने एक हिंदी विद्यालय के शाकाहारी प्राचार्य जुलूस की अगुवाई कर रहे थे। वो उनके साथ और अधिक जोश में नारे लगाने लगा।

तभी प्राचार्य जी का फ़ोन बजा, वो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के फ़ोन पर बात करते हुए कह रहे थे, "हाँ हुज़ूर, सब ठीक है, लेकिन इस बार रुपया नहीं डॉलर चाहिये,बेटे से मिलने अमेरिका जाना है।"

सुनकर वो चुप हो गया, लेकिन उसके मन में नारों की आवाज़ बंद नहीं हो रही थी, उसने अपनी जेब से बुखार की अंग्रेजी दवाई निकाली, उसे कुछ क्षणों तक देखा फिर उसके चेहरे पर मजबूरी के भाव आये और उसने फिर से दवाई अपनी जेब में रख दी।

- डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी
पता : 3 प 46, प्रभात नगर, 
सेक्टर - 5, हिरण मगरी, 
उदयपुर (राजस्थान) - 313002
सम्पर्क सूत्र : 99285 44749
ई-मेल : chandresh.chhatlani@gmail.com