मंगलवार, 5 दिसंबर 2017

राजेश पुरोहित की गजल : गरीबों में ईश्वर जिसने खोजा है

गरीबों में ईश्वर जिसने खोजा है


गरीबों में ईश्वर जिसने खोजा है।
असल में वहीं करतार रहता है।।

योजनाओं का लाभ मिले उन्हें।
जो असल में हकदार रहता है।।

मेरे शहर में डेंगू ने पैर पसारे है।
हर कोई अब  बीमार रहता है।।

घरों में अपनत्व नहीं रहा जबसे।
हर कोई यहाँ  लाचार रहता है।।

करूँ किस तरह प्यार की बातें।
करना जिसमें इजहार रहता है।।

मतलब परस्ती में जो जीते यहाँ।
मेरी नज़र में धिक्कार रहता है।।

वतन की खा राग दुश्मन के गाते।
वो शख्स अक्सर गद्दार रहता है।।

पाक तेरी हरकत घिनोनी होती है।
तेरे भीतर छुपा मक्कार रहता है।।

बुजुर्गों की जहां खिदमत होती है।
"पुरोहित "वही  परिवार रहता है।।


-राजेश पुरोहित 
श्रीराम कॉलोनी भवानीमंडी, 
जिला झालावाड़, राजस्थान 
पिन 326502 
सम्पर्क सूत्र : 07073318074
ई-मेल : 123rkpurohit@,gmail.com

सोमवार, 4 दिसंबर 2017

चन्द्रेश कुमार छतलानी की लघु कथा : विरोध का सच

लघुकथा : विरोध का सच


"अंग्रेजी नववर्ष नहीं मनेगा....देश का धर्म नहीं बदलेगा..." जुलूस पूरे जोश में था। देखते ही मालूम हो रहा था कि उनका उद्देश्य देशप्रेम और स्वदेशी के प्रति जागरूकता फैलाना है| वहीँ से एक राष्ट्रभक्त गुज़र रहा था, जुलूस को देख कर वो भी उनके साथ मिल कर नारे लगाते हुए चलने लगा।

उसके साथ के दो व्यक्ति बातें कर रहे थे,

"बच्चे को इस वर्ष विद्यालय में प्रवेश दिलाना है। कौन सा ठीक रहेगा?"

"यदि अच्छा भविष्य चाहिये तो शहर के सबसे अच्छे अंग्रेजी स्कूल में दाखिला दिलवा दो।"


उसने उन्हें तिरस्कारपूर्वक देखा और नारे लगाता हुआ आगे बढ़ गया, वहां भी दो व्यक्तयों की बातें सुनीं,

"शाम का प्रोग्राम तो पक्का है?"

"हाँ! मैं स्कॉच लाऊंगा, चाइनीज़ और कोल्डड्रिंक की जिम्मेदारी तेरी।"

उसे क्रोध आ गया, वो और जोर से नारे लगाता हुआ आगे बढ़ गया, वहां उसे फुसफुसाहट सुनाईं दीं,

"बेटी नयी जींस की रट लगाये हुए है, सोच रहा हूँ कि..."

"तो क्या आजकल के बच्चों को ओल्ड फेशन सलवार-कुर्ता पहनाओगे?"

वो हड़बड़ा गया, अब वो सबसे आगे पहुँच गया था, जहाँ खादी पहने एक हिंदी विद्यालय के शाकाहारी प्राचार्य जुलूस की अगुवाई कर रहे थे। वो उनके साथ और अधिक जोश में नारे लगाने लगा।

तभी प्राचार्य जी का फ़ोन बजा, वो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के फ़ोन पर बात करते हुए कह रहे थे, "हाँ हुज़ूर, सब ठीक है, लेकिन इस बार रुपया नहीं डॉलर चाहिये,बेटे से मिलने अमेरिका जाना है।"

सुनकर वो चुप हो गया, लेकिन उसके मन में नारों की आवाज़ बंद नहीं हो रही थी, उसने अपनी जेब से बुखार की अंग्रेजी दवाई निकाली, उसे कुछ क्षणों तक देखा फिर उसके चेहरे पर मजबूरी के भाव आये और उसने फिर से दवाई अपनी जेब में रख दी।

- डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी
पता : 3 प 46, प्रभात नगर, 
सेक्टर - 5, हिरण मगरी, 
उदयपुर (राजस्थान) - 313002
सम्पर्क सूत्र : 99285 44749
ई-मेल : chandresh.chhatlani@gmail.com



रविवार, 10 सितंबर 2017

आचार्य बलवन्त का गीत : उम्मींदों की आशा हिन्दी

उम्मींदों की आशा हिन्दी


जन सामान्य  की  भाषा हिन्दी।
जन–मन  की जिज्ञासा हिन्दी।
जन–जीवन में रची बसी 
बन जीवन की अभिलाषा हिन्दी।

तुलसी-सूर की बानी हिन्दी।
विश्व की जन कल्याणी हिन्दी।
ध्वनित हो रही घर–आँगन में
बनकर कथा – कहानी हिन्दी।
संकट के  इस विषम दौर में
उम्मींदों की आशा हिन्दी।

गीत प्रेम के गाती हिन्दी।
सबको गले लगाती हिन्दी।
प्रेम – भाव से जीने का 
मन में उल्लास जगाती हिन्दी।
प्रेम–भाव से करती, सबके
मन की दूर निराशा हिन्दी।

 राष्ट्र के गानेवाले। 
हँसकर शीश कटानेवाले।
मातृभूमि  की रक्षाहित
अपना सर्वस्व लुटानेवाले।
राष्ट्रधर्म पर मिटनेवाले
वीरों की है गाथा हिन्दी।

सेवा भाव सिखाती हिन्दी।
सबके मन को भाती हिन्दी।
सबके दिल की बातें करती
सबका दिल बहलाती हिन्दी।
स्नेह, शील, सद्भाव, समन्वय
संयम की परिभाषा हिन्दी।  

-आचार्य बलवन्त,
विभागाध्यक्ष, हिंदी कमला 
कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट स्टडीस
450, ओ.टी.सी.रोड, कॉटनपेट, 
बेंगलूर-560053 (कर्नाटक) 
मो. 91-9844558064 , 7337810240   
Email-balwant.acharya@gmail.com

मंगलवार, 29 अगस्त 2017

सुरेश भारद्वाज निराश की ग़ज़ल : सोचता हूँ अब तू ही बता क्या लिखूँ 

ग़ज़ल


सोचता हूँ अब तू ही बता क्या लिखूँ 
तुम्हारे लिये कोई दुआ क्या लिखूंँ।।

मुर्दों की बस्ती में कब से पड़े थे हम
लाश कहाँ गई दिखा क्या लिखूँ।

जीना तो बहुत मुश्किल हो गया है
अब  जाऊँ कहां बता क्या लिखूँ।

चन्द घड़ियां जीने की मोहलत और देदो
याद कर लूं  मैं अपना खुदा क्या लिखूँ।

परेशांँ है दुनियां मुझसे मैं दुनियां से
अब तो मुझे कुछ  समझा क्या लिखूँ।

जैसी भी थी जी-ली मैंने  यह जिंदगी
पता नहीं नुक्सां हुआ या नफा क्या  लिखूंँ।

दो घड़ी मुझे भी तो तुम याद कर लेना
होगा जब मौत से मेरा निकाह क्या लिखूँ

धड़कता रहा दिल सदैव जिसके लिये
क्यूं नहीं वो दिल में बसा क्या लिखूँ।

बहुत कुछ किया जीने की खातिर मैंने
रहा कोरा जिंदगी का सफा क्या लिखूँ।

अब तक तुम मेरी ही तो  सुनती आई हो
आज कुछ अपनी भी तो सुना क्या लिखूँ

बुझ गया चिराग दिल का न मालूम क्यूँ
चली तो न थी ज़रा भी हवा क्या लिखूं।

तेरे लिये तो हमने पूरी जिंदगी डुबो दी 
और कहलाये फिर भी बे-वफा क्या लिखूँ।

अपनी ही कई भूलों से भटके हम रास्ता
प्यार किया था या गुनाह क्या लिखूँ।

मर मर कर जी रहे हैं अब तो हम मितवा
कह किसकी थी यह सदा क्या लिखूँ।

क्या समझेंगे लोग मेरी मजबूरियों को कभी
कब टूटेगा मेरा भ्रम का नशा क्या लिखूँ

जख्म मेरे  अब तो नासूर होने  लगे  हैं
दर्द देकर है कौन दिल में बसा क्या लिखूँ।

डूबती हुई कश्ती को बचाये भी तो कौन 
समन्दर में करे कौन परवाह क्या लिखूँ।

बिन तेरे टीस सी उठती है मेरे दिल में
दो पल मेरे पास भी तो आ क्या लिखूँ।

मैं कुछ भी कहूं  गुनाह समझते हैं लोग
क्या करुँ कुछ तो बतला क्या लिखूँ।

गैरों के जुर्म सबको अक्सर बहुत दिखते है
अपनों पे भी पड़ जाती निगाह  क्या लिखूँ।

दर्द दे-देकर कब तक तड़पाओगे मुझे
क्यूँ रहे हो मुझे यूं ही सता क्या लिखूँ।

दर दर भटका हूँ  तो तेरी खतिर मैं
कर लेते मुझसे  भी सुलाह क्या लिखूँ।

तेरे साथ मैंने था एसा क्या कर दिया
किया क्यूँ मुझको तूने तबाह क्या लिखूँ

जो कुछ भी मेरे पास था तुझे दे दिया
अफसोस तुझे कुछ नहीं जचा क्या लिखू्ँ।

बहुत खिचड़ी पकाई है लोगों ने मेरे खिलाफ
मेरे घर में आज कुछ नहीं पका क्या लिखूं।

पता नहीं यह दुनियाँ क्यूँ दुश्मन हो गयी है
रहा नहीं कोई  अपना सखा क्या लिखूँ।

मैने तो कभी किसी को बुरा नहीं कहा
तुम भिड़ते रहे खाहमखाह क्या लिखूँ।

मेरी गलतियों  की कोई गिनती नहीं है
क्या माफ होंगे मेरे गुनाह क्या लिखूँ।

हर किसी को गले से लगाया है  मैंने
सबने दिया क्यूँ मुझे दगा क्या लिखूँ।

मुझे कत्ल करने से पहले खुद को पूछ लेते
कर लेते मुझसे भी सलाह क्या लिखूंँ।

आने दो मौत को मुश्किल से तो आई है
क्यूँ  रहे  हो यूँ  ही  डरा  क्या लिखूँ।

वक्त हो चला है अब तो मेरे जाने का
करेगा कौन मुझे इतलाह क्या लिखूं।

मैने दिन भी तो अक्सर काले ही देखे है
क्यूँ रात को कहते हो स्याह क्या लिखूँ

गुनाह ही गुनाह किये हैं  मैंने ताउम्र
लगेगी उप्पर कौन सी दफा क्या लिखूँ।

निराश ना -उम्मीद  सी है यह मेरी जिन्दगी
है कौन मेरा आखिरी आसरा क्या लिखूँ।

- सुरेश भारद्वाज निराश
H.N. A-58 न्यू धौलाधार कलोनी,
लोअर बड़ोल पी .ओ. दाड़ी
धर्मशाला, जिला कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)
पिन : 176057
सम्पर्क सूत्र : 9418823654
       9805385225

रविवार, 27 अगस्त 2017

वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी को किया जाएगा सम्मानित 

        दिनाँक 27 अगस्त, 2017 को हिन्दी साहित्य संगम की कार्यकारिणी की बैठक मिलन विहार, मुरादाबाद स्थित, मिलन धर्मशाला में आयोजित की गई।


        बैठक में हिन्दी दिवस (14 सितम्बर) को धूमधाम से मनाने का निर्णय लिया गया। संस्था के अध्यक्ष श्री रामदत्त द्विवेदी जी ने बताया कि गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर हिन्दी दिवस समारोह आयोजित किया जाएगा। बैठक में हिन्दी दिवस के कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई।
         बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि इस वर्ष मुरादाबाद के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी जी को 'हिन्दी साहित्य गौरव' सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। कार्यक्रम का आयोजन हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर दिनाँक 13 सितम्बर, 2017 को आकांक्षा विद्यापीठ, मिलन विहार, मुरादाबाद में किया जाएगा।
         बैठक की अध्यक्षता श्री रामदत्त द्विवेदी जी ने तथा संचालन संस्था के महासचिव जितेन्द्र कुमार जौली ने किया। बैठक में श्री ओमकार सिंह ओंकार, योगेन्द्र वर्मा व्योम, राजीव प्रखर, हेमा तिवारी भट्ट, प्रदीप शर्मा, के०पी० सिंह सरल आदि लोग उपस्थित रहे।

शनिवार, 19 अगस्त 2017

बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग को दी गई श्रद्धांजलि

      दिनाँक 18 अगस्त, 2017 ई० को हिन्दी साहित्य संगम के तत्वाधान में मिलन विहार मुरादाबाद स्थित मिलन धर्मशाला में मुरादाबाद के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, महाकवि श्री बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग जी के आकस्मिक निधन पर शोक सभा आयोजित की गई।



       इस अवसर पर उपस्थित वक्ताओं ने कहा कि "अनुराग जी अद्भुत रचनाकार थे, उनके द्वारा रचित गीत, गजलें, कहानियाँ, महाकाव्य, दोहे सहित समग्र रचनाकर्म रचनाकर्म हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। 'अनुराग' जी दैहिक रूप से भले ही हमारे मध्य आज नहीं हों किन्तु अपनी रचनाओं के रूप में सदैव हमारे मध्य बने रहेंगे।"



        ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग जी का निधन 84 वर्ष की आयु में 17 अगस्त, 2017 ई० को हो गया था। उन्होंने अपने जीवन काल में तीन दर्जन से अधिक पुस्तके लिखी लिखीं। आँसू, हिन्दुत्व विनाश की ओर, दर्पन मेरे गाँव का, चाँदनी, धूप आती ही नही, सोनजुही की गन्ध, आँगन में सोनपरी, अपने-अपने सूरज, साँसो की समाधि, चन्दन वन सँवरें, एक टुकड़ा आसमान, आँगन से आकाश तक आदि उनकी कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उन्हे 'दर्पन मेरे गाँव का' महाकाव्य के लिए 15,000 रुपये तथा उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 'चाँदनी' महाकाव्य के लिए 8,000 रुपये का पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्हे दो दर्जन से अधिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया।

        इस अवसर पर राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, अंतर्राष्ट्रीय साहित्य कला मंच, अक्षरा, सुकाव्य प्रेरणा मंच, परमार्थ, संकेत, श्री गोविन्द हिन्दी साहित्य सेवा समिति आदि संस्थाओं के प्रतिनिधियों साहित्य श्री रामदत्त द्विवेदी, जितेन्द्र कुमार जौली, योगेन्द्र वर्मा व्योम, राजीव प्रखर, शिशुपाल मधुकर, अशोक विश्नोई, ओमकार सिंह ओंकार, विवेक निर्मल, के० पी० सिंह सरल, सतीश गुप्ता फ़िगार, विकास मुरादाबादी, योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई, वीरेन्द्र सिंह बृजवासी, रमेशचंद्र यादव कृष्ण, हेमा तिवारी भट्ट, महेश दिवाकर, रामवीर सिंह वीर, अंकित गुप्ता अंक, अशोक विद्रोही, आर० एल० शुक्ला आदि लोग उपस्थित रहे। 

       श्रद्धांजलि सभा के अंत में 2 मिनट का मौन रखकर दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की गई।

मंगलवार, 1 अगस्त 2017

हरप्रसाद पुष्पक की कविता : जय मातृभूमि

जय मातृभूमि


बैरी है इस राष्ट्र का जो
करता गड़बड़ झाला हैं ।

सीना चीरो आंख फोड़ दो
या फिर देश निकाला है  ।

पापी निशाच हैं वो जो नित
बस दुश्मन के गुण गाते हैं ।

खाते पीते इस देश का जो
 फिर आंख दिखा गुर्राते हैं ।

मातृभूमि सत्कार भूल कर
अच्छी लगती अब खाला है ।।

सीना चीरो आंख फोड़ दो
या फिर देश निकाला है ।

अपने ध्वज और संविधान का
मान नही रख सकता है  ।

अपनी सेना की निष्ठा पर नित
बस प्रश्न खड़े करता है वो ।

ऐसे पापी नीच की भाषा
सबक सिखाना ही होगा।

जीभ काट उन गददारों की
शूली पे लटकाना ही होगा ।

भारत के वीरों की शक्ति का 
फिर अहसास कराना है 

सीना चीरो आँख फोड़ दो
या दे दो देश निकाला है  ।

उत्तर दे दो फिर एक बार
जो छिप छिप करके आते है

बार बार फिर काश्मीर पर
हमको आँख दिखाते है  ।

उत्तर देना होगा उनको जो
जयचन्द बनकर बिष घोल रहे

शिव भोले के काश्मीर पर 
घृणित भाषा खुलबोल रहे

काश्मीर तो स्वर्ग राष्ट्र का
करता सब को विभौर है ।

मातृभूमि का अंग अभिन्न है
राष्ट्र का कहलाता सिरमौर है ।

देखा भी गर कश्मीर को तूने
तेरा ही अस्त्तित्व मिटा देगें ।

दुनिया के नक्शे से हम पूरा
अब पाकिस्तान मिटा देंगे  ।

- हरप्रसाद पुष्पक 
L.i.g 181/20 आवास विकास,
रूद्रपुर (ऊधम सिंह नगर)
उत्तराखण्ड

सम्पर्क सूत्र : 09927721977

गुरुवार, 27 जुलाई 2017

कुमारी अर्चना की कविता : रात और दिन


रात और दिन


मेरे हिस्से में रात आई
रात का रंग काला है
इसमें कोई दूजा रंग नहीं मिला
इसलिए सदा सच्चा है
मेरी ज़िन्दगी भी अकेली है
कोई दूजा ना मिला!

फिर दिन का हिस्सा
सफेद रंग का है
जो दूजे रंग से मिल बना
झूठा सा दिखता है
फिर भी जीवन में
विविध रंगों को भरता है
वो कहाँ गया
जो मेरे दिल को भाता था
शायद गुम हो गया
रात के काले में!

-कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार

गुरुवार, 29 जून 2017

हमारे महापुरुष - श्री जितेन्द्र कुमार जौली



पुस्तक परिचय


कृति :  हमारे महापुरुष (जीवनी-संग्रह)
सर्वाधिकार : लेखक
लेखक : श्री जितेन्द्र कुमार जौली
                अम्बेडकर नगर, गांगन का पुल, दिल्ली रोड, 
                पोस्ट लांकड़ी फाजलपुर,मुरादाबाद - 244001 (उ.प्र.)
                 मोबाइल : 09358854322
संस्करण : प्रथम  (1000 प्रतियाँ)
प्रकाशन वर्ष : 2017 ई.
पृष्ठ : 56
मूल्य : 30 रुपये
प्रकाशक :  अखिल भारतीय अम्बेडकर युवक संघ, 
                मुख्यालय :  सिविल लाइन्स, मुरादाबाद (उ.प्र.)
शब्द संयोजन :  मेहदी ग्राफिक्स,
                प्रिंस रोड, मुगलपुरा, मुरादाबाद  (उ.प्र.)


HAMARE MAHAPURUSH   BY JITENDRA KUMAR JOLLY



मंगलवार, 27 जून 2017

ओंकार सिंह ओंकार का गीत : मेघा आओ, जल बरसाओ 

मेघा आओ, जल बरसाओ 


मेघा आओ, जल बरसाओ
देखो और नहीं तरसाओ

दुखी हो रहे सब ही के मन
झुलस रहा हरियाली का तन
प्यासी धरती, प्यासा उपवन
आओ! सबकी प्यास बुझाओ।

नदी न अब संगीत सुनाती
लहर न अंगड़ाई ले पाती
घायल हुआ वदन तालों का
जल की औषधि इन्हें पिलाओ

जीव-जंतु सब ही व्याकुल हैं 
पानी पीने को आकुल हैं
सबकी दृष्टि गगन  को देखे
आकर अम्बर में छा जाओ।

फसलें खोने लगीं जवानी
जीवन नहीं कहीं बिन पानी 
धरती हरी-भरी करने को
कण-कण में अमृत भर जाओ।

करुणा मत छोड़ो करुणाकर 
शीतलता दे बनो सुधाकर
मिले ज़िन्दगी हर प्राणी को
मौसम की तुम तपन बुझाओ।

- ओंकार सिंह 'ओंकार '
1-बी- 241 बुद्धि विहार , मझोला
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
सम्पर्क सूत्र: 9997505734

सोमवार, 26 जून 2017

चंदन है इस देश की माटी  - श्री फक्कड़ मुरादाबादी



पुस्तक परिचय


कृति : चंदन है इस देश की माटी (देशभक्ति गीत-संग्रह)
सर्वाधिकार : कवि
रचनाकार : श्री फक्कड़ मुरादाबादी
 रामगंगा विहार कालोनी, 1-2, बसेरा नगर सहकारी समिति, 
निकट विल्सोनिया डिग्री कालिज, मुरादाबाद - 244001 (उ.प्र.)
मोबाइल : 09410238638
संस्करण : प्रथम
प्रकाशन वर्ष : 2016
पृष्ठ : 16
मूल्य : देश प्रेम
प्रकाशक : सागर तरंग प्रकाशन,
डी-12, अवंतिका कालोनी, एम.डी.ए., मुरादाबाद (उ.प्र.)
मोबाइल : 9411809222


CHANDAN HAI IS DESH KI MATI BY FAKKAR MORADABADI


मंगलवार, 20 जून 2017

सूर्य नारायण शूर की ग़ज़ल

  है सूरज बादलों  में पर  तपन  महसूस होती है

चला थोड़ा ही हूँ फिर  भी थकन  महसूस  होती  है 
है सूरज बादलों  में पर  तपन  महसूस होती है

नहीं मालूम उसने क्या छिपा  रक्खा   है आँखो में 
मिली जब से ये नज़रे है चुभन  महसूस  होती है

यहाँ की अब मुझे आबो  हवा  अच्छी  नहीं लगती  
यहाँ से ले  चलो  मुझको घुटन  महसूस होती है

दिया जबसे  मुझे उसने सरे  बाज़ार  यूँ  धोखा  
कहीं भी देख कर उसको  जलन  महसूस होती है 

बहुत बौना बना  डाला  जहाँ ने  सोच को अपनी  
हकीकत  है जहाँ में अब उबन महसूस  होती है 


- सूर्य नारायण शूर
इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश 
सम्पर्क सूत्र :- 9984725044, 9452816164
Email :- shoorsn@gmail.com

मंगलवार, 13 जून 2017

आचार्य बलवन्त का गीत : बाबा की चौपाल

बाबा की चौपाल



बूढ़ा बरगद देख रहा युग की अंधी चाल।
बरसों से सूनी लगती है बाबा की चौपाल।
पाँवों की एड़ियाँ फट गईं,
बँटवारे में नीम कट गई,
कोई खड़ा है मुँह लटकाए,  कोई फुलाए गाल।
बरसों से सूनी  लगती है बाबा की चौपाल।
बाँट दी गई माँ की लोरी,
मुन्ने की बँट गई कटोरी,
भेंट चढ़ गया बँटवारे की पूजावाला थाल।
बरसों से सूनी लगती है बाबा की चौपाल।   
आँगन से रूठा उजियारा,
खामोशी ने पाँव पसारा, 
चहल-पहल अब नहीं रही,सूखी सपनों की डाल।
बरसों से सूनी लगती है बाबा की चौपाल।

-आचार्य बलवन्त
विभागाध्यक्ष हिंदी
कमला कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट स्टडीस
450, ओ.टी.सी.रोड, कॉटनपेट, बेंगलूर-560053 (कर्नाटक) 
मो. 91-9844558064 , 7337810240   
Email- balwant.acharya@gmail.com

रविवार, 26 मार्च 2017

जितेन्द्र कुमार जौली की पुस्तक हमारे महापुरुष का किया गया लोकार्पण 

'हमारे महापुरुष' का किया गया लोकार्पण 

            दिनांक 26 मार्च, 2017 को अखिल भारतीय अम्बेडकर युवक संघ की एक बैठक सिविल लाइन्स, मुरादाबाद स्थित डॉ0 अम्बेडकर पार्क में आयोजित की गई। बैठक में अखिल भारतीय अम्बेडकर युवक संघ द्वारा प्रकाशित एवं जितेन्द्र कुमार जौली द्वारा लिखित पुस्तक 'हमारे महापुरुष' (जीवनी संग्रह) का लोकार्पण किया गया।

 

            पुस्तक के सम्पादक एवं संघ के राष्ट्रीय महासचिव श्री महेंद्र पाल सिंह ने बताया कि हमारी नई पीढ़ी को यह मालूम नहीं कि हमारे लिए किसने क्या किया है? यह पुस्तक नई पीढ़ी को हमारे महापुरुषों के जीवन परिचय एवं त्याग से परिचित कराएगी।

             संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री दौलत सिंह ने बताया कि अखिल भारतीय अम्बेडकर युवक संघ के तत्वावधान में दिनांक 9 अप्रैल,  2017 को प्रातः 11:00 बजे से चित्रगुप्त  इण्टर कॉलेज, मुरादाबाद में 'डाॅ0 अम्बेडकर सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता' का आयोजन किया जाएगा। प्रतियोगिता में भाग लेने वाले प्रतियोगियों को तैयारी हेतु 'हमारे महापुरुष' पुस्तक प्रदान की जाएगी। 

             बैठक में श्री दौलत सिंह, महेन्द्र पाल सिंह, मुकेश कुमार गौतम, महावीर प्रसाद मौर्या! जितेन्द्र कुमार जौली, जयपाल सिंह, कृष्णपाल सिंह, जगदीश चंद्र, राजेश कुमार, हरगोविंद सिंह, राम सिंह गौतम, ग्रंथ सिंह, बी0 एस0 भारती, तारा सिंह, बाली सिंह भारती, भयंकर सिंह बौद्ध, करन सिंह, रविन्द्र सिंह, राजेंद्र चौधरी, भारत सिंह आदि ने भाग लिया।

मंगलवार, 31 जनवरी 2017

सुरेश भारद्वाज निराश की गज़ल : तन्हा बड़ी हैं रातें, सताया न कीजिये

तन्हा  बड़ी   हैं   रातें,  सताया न कीजिये


सपनों  में   आके   मेरे,  जाया  न कीजिये
तन्हा  बड़ी   हैं   रातें,  सताया न कीजिये।

तेरे  ही   ख्यालों   में,   जिन्दगी  वसर हुई,
दिल  तोड़   कर   मेरा,  जाया न कीजिये।

पर्वतों की  चोटियां भी बदली से ढक गयीं,
सावन में मीत  मुझको, रुलाया न कीजिये।

गीतों  में   तेरे  हमने  खुद   को डुबो दिया,
चलते इधर - ऊधर  गुनगुनाया न कीजिये।

जख्मों का दर्द अब , कुछ  और बढ़ गया है,
मरहम लगा के इनको सहलाया न कीजिये।

जुल्फें तुम्हारी  ऐसी बदली सावन के जैसी,
धूप  में   धोकर इन्हें  सुखाया  न  कीजिये।

तुम  हो  मेरी  पूजा  मेरी  अर्चना  हो  तुम,
मेरे   लिये  खुदा को  मनाया  न  कीजिये।

यारा अब तो चाँद भी जलने लगा है तुमसे,
चांदनी  में  बैठ   कर  नहाया  न  कीजिये।

देखा  है जब से  तुमको मर  चुके हैं हम तो,
नज़रें मिला कर हमको तड़पाया न कीजिये।

जी   नहीं  सकेंगे    बिन  तुम्हारे  अब  हम,
दांतों  में होंठ  लेकर मुस्काया  न  कीजिये।

इन्सां बदल गया है नीयत  की  है बात क्या,
गैरत बेगैरत बोलकर समझाया  न कीजिये।

पक्के घरों से  भी अब बस्तीं  नहीं  बस्तियां,
निराश घर अब  रेत के  बनाया  न कीजिये।

-सुरेश भारद्वाज 'निराश'
ए- 58 न्यू धौलाधार कलोनी
लोअर बड़ोल पी.ओ.दाड़ी
तहसील  धर्मशाला,
जिला कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)
सम्पर्क सूत्र  9418823654
                   9805385225
Email- nirashscb@gmail.com

गुरुवार, 19 जनवरी 2017

संजय वर्मा "दृष्टी "की कविता : क्या जिंदगी आधुनिक हो गई

क्या जिंदगी आधुनिक हो गई


क्या जिंदगी आधुनिक हो गई 

माँ अब नहीं देखती दीवार पर धुप आने का  समय 
अचार बनाने  में क्या मिलाया जाए  और कितना 
बूढ़े पग अब नहीं दबाए जाते अब क्यों 
क्या जिंदगी आधुनिक हो गई

चश्मे के  नम्बर कब बढ़ गए 
सुई में धागा नहीं डलता कांप रहे हाथ कोई मदद नहीं 
बूढ़ों को संग ले जाने में शर्म हुई पागल अब क्यों 
क्या जिंदगी आधुनिक हो गई

घर के पिछवाड़े से आती खांसी की आवाजें 
कोई सुध लेने वाला क्यों नहीं 
संयुक्त दीखते परिवार  मगर लगता अकेलापन 
कुछ खाने की लालसा मगर कहने में संकोच  क्यों   
क्या जिंदगी आधुनिक हो गई

बुजुर्गो का आशीर्वाद /सलाह /अनुभव पर लगा जंग 
भाग दौड़ भरी दुनिया में उनके पास बैठने का समय क्यों नहीं 
गुमसुम से बैठे पार्क में और अकेले जाते धार्मिक स्थान अब क्यों  
क्या जिंदगी आधुनिक हो गई

बुजुर्ग है तो रिश्ते है ,नाम है , पहचान है 
अगर बुजुर्ग नहीं तो बच्चों की  कहानियाँ बेजान है 
ख्याल ,आदर सम्मान को करने लगे नजर अंदाज अब क्यों  
क्या जिंदगी आधुनिक हो गई

-संजय वर्मा "दृष्टी "
125 शहीद भगत सिंह मार्ग 
मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश)
सम्पर्क सूत्र : 9893070756