सोमवार, 5 फ़रवरी 2024

बोली से यों तय हुआ, शब्दों का व्यवहार...

 हिन्दी साहित्य संगम की कवि गोष्ठी में कवियों ने प्रस्तुत की रचनाएँ

        मुरादाबाद|दिनाॅंक 4 फरवरी, 2024 को साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता रामदत्त द्विवेदी ने की। मुख्य अतिथि के रूप में ओंकार सिंह ओंकार तथा विशिष्ट अतिथियों के रूप में रघुराज सिंह निश्चल एवं योगेन्द्र वर्मा व्योम उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन राजीव प्रखर ने किया। उपस्थित रचनाकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से अपनी भावनाएं व्यक्त कीं।

काव्य पाठ करते हुए जितेन्द्र कुमार जौली

         रचना पाठ करते हुए राजीव प्रखर ने अपने वसंती दोहों के माध्यम से सभी को वसंत के रंग में इस प्रकार डुबोया - ओढ़े चुनरी प्रीत की, कहता है मधुमास। ओ अलबेली लेखनी, होना नहीं उदास।। मिलजुल कर रचवा रहे, अनगिन सुन्दर गीत। स्वागत में ऋतुराज के, कोकिल-हरिया-पीत।। जितेन्द्र जौली की अभिव्यक्ति थी - महज दिखावा लग रही, हमें आयकर छूट। सात लाख तक छूट है, उससे ऊपर लूट।। वरिष्ठ रचनाकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा - बोली से यों तय हुआ, शब्दों का व्यवहार। 'मन से दिया उतार' या, 'मन में लिया उतार'।। मनोज मनु के उद्गार इस प्रकार थे - छलछलाऐं अश्क़ गर ,दिल पे असर जाने के बाद, डबडबा जाता है आलम आँख भर जाने के बाद। 

काव्य पाठ करते हुए योगेन्द्र वर्मा व्योम

          राम सिंह निशंक ने अपनी भावनाएं उकेरीं - बरस पाॅंच सौ बाद में, हर्षित हुआ समाज। बिगड़े काम बन जाऍंगे, सम्भव हुआ है आज।। रघुराज सिंह निश्चल ने वर्तमान परिस्थितियों का काव्यमय चित्र खींचा - जीवन को महकाते रहिए। जब तक चले चलाते रहिए।। जीवन पथ आसान बनेगा, हॅंसते और हॅंसाते रहिए। डॉ० मनोज रस्तोगी ने व्यंग्य के रंग में सभी को इस प्रकार डुबोया - जैसे तैसे बीत गए पांच साल रे इन भैया। फिर लगा बिछने वादों का जाल रे भैया। आवाज में भरी मिठास, चेहरे पर मासूमियत, भेड़ियों ने पहनी गाय की खाल रे भैया। 

काव्य पाठ करते हुए राजीव प्रखर

         मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार की इन पंक्तियों ने भी सभी को सोचने पर विवश किया - सूना-सूना-सा लगे, हमको अपना गाॅंव। नहीं दिखे चौपाल अब, नहीं पेड़ की छाॅंव।। हिन्दी हिन्दुस्तान का, गौरव है श्रीमान। अपनी भाषा का करें, सब मिलकर उत्थान।। अध्यक्षता करते हुए रामदत्त द्विवेदी ने कहा - यदि आए इस जगत में, कर लो बस दो काम। घर में राखो सुमति को, मन में रखो राम।। रामदत्त द्विवेदी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।