गुरुवार, 11 अगस्त 2016

हेमा तिवारी भट्ट की कविता

सब तेरे मन का हो, ऐसा मुमकिन तो नहीं


सब तेरे मन का हो,
ऐसा मुमकिन तो नहीं
रात तो रहेगी रात
होगा वह दिन तो नहीं|

गिन के तेरे पाप का,
बदला जो ले लेती है
सम्हलना ये वक्त कहीं,
जहरीली नागिन तो नहीं|

यूँ तो हर शख्स के,
अलेहदा ख्याल होते हैं
तू मुझसे इत्तफाक रखे
ये भी नामुमकिन तो नहीं|

 उम्र बढ़ती जाती है पर,
'मैं' से मिल न पाया हूँ
ढूँढू दर-बदर जिसको,
दिल में वो साकिन तो नहीं

गठरी गुनाह की तेरी,
तुझसे उठ न पायेगी
अभी समय है,देख ले
गलतियाँ अनगिन तो नहीं

- हेमा तिवारी भट्ट
खुशहालपुर, मुरादाबाद, (उ0 प्र0)
सम्पर्क सूत्र : 9720399413

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