तन्हा बड़ी हैं रातें, सताया न कीजिये
सपनों में आके मेरे, जाया न कीजिये
तन्हा बड़ी हैं रातें, सताया न कीजिये।
तेरे ही ख्यालों में, जिन्दगी वसर हुई,
दिल तोड़ कर मेरा, जाया न कीजिये।
पर्वतों की चोटियां भी बदली से ढक गयीं,
सावन में मीत मुझको, रुलाया न कीजिये।
गीतों में तेरे हमने खुद को डुबो दिया,
चलते इधर - ऊधर गुनगुनाया न कीजिये।
जख्मों का दर्द अब , कुछ और बढ़ गया है,
मरहम लगा के इनको सहलाया न कीजिये।
जुल्फें तुम्हारी ऐसी बदली सावन के जैसी,
धूप में धोकर इन्हें सुखाया न कीजिये।
तुम हो मेरी पूजा मेरी अर्चना हो तुम,
मेरे लिये खुदा को मनाया न कीजिये।
यारा अब तो चाँद भी जलने लगा है तुमसे,
चांदनी में बैठ कर नहाया न कीजिये।
देखा है जब से तुमको मर चुके हैं हम तो,
नज़रें मिला कर हमको तड़पाया न कीजिये।
जी नहीं सकेंगे बिन तुम्हारे अब हम,
दांतों में होंठ लेकर मुस्काया न कीजिये।
इन्सां बदल गया है नीयत की है बात क्या,
गैरत बेगैरत बोलकर समझाया न कीजिये।
पक्के घरों से भी अब बस्तीं नहीं बस्तियां,
निराश घर अब रेत के बनाया न कीजिये।
-सुरेश भारद्वाज 'निराश'
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लोअर बड़ोल पी.ओ.दाड़ी
तहसील धर्मशाला,
जिला कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)
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