सोमवार, 29 जनवरी 2024

कलाश्री सम्मान से सम्मानित किए गए डाॅ. आर सी शुक्ल


        मुरादाबाद, 28 जनवरी, 2024। कला एवं साहित्यिक संस्था कला भारती साहित्य समागम की ओर से आज हुए एक समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार डा. आर सी शुक्ल को अंग-वस्त्र, प्रतीक चिह्न, मानपत्र एवं श्रीफल भेंटकर "कलाश्री सम्मान" से अलंकृत किया गया। संस्था की ओर से उपरोक्त सम्मान समारोह एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में हुआ।

        नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता बाबा संजीव आकांक्षी ने की। मुख्य अतिथि डा. महेश दिवाकर एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में ब्रजेन्द्र वत्स एवं रघुराज सिंह निश्चल उपस्थित रहे। सम्मानित व्यक्तित्व वरिष्ठ साहित्यकार डा. आर सी शुक्ल के व्यक्तित्व व कृतित्व पर आधारित राजीव प्रखर द्वारा लिखित आलेख का वाचन योगेन्द्र वर्मा व्योम ने जबकि अर्पित मान-पत्र का वाचन ईशांत शर्मा ईशू द्वारा किया गया। संचालन आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा किया गया।


          सम्मान समारोह के पश्चात् एक काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें रचना पाठ करते हुए सम्मानित व्यक्तित्व डा. आर सी शुक्ल ने कहा - मन व्यथित है बहुत, तुम कहाँ हो प्रिये। तोड़ दो बंदिशें, मन आनंदित रहे।। बाबा संजीव आकांक्षी ने कहा- तुलसी भरोसे राम की निश्चिंत होकर सोए। अनहोनी होव नहीं होनी हो सो होए।। डा. महेश दिवाकर ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा- महाशक्तियां जहाँ खड़ी हैं, वह मचान भारत का है। जयचंदों की संतानों,क्यों भारत अपमान करें।। योगेन्द्र वर्मा व्योम ने अपने मनोभाव व्यक्त करते हुए कहा - कृपासिंधु के रूप में, छवि धर ललित-ललाम। दिव्य अयोध्या में हुए, प्राण-प्रतिष्ठित राम।। नष्ट हुए पल में सभी, लोभ क्रोध मद काम। बनी अयोध्या देह जब, और हुआ मन राम।। डॉ मनोज रस्तोगी की अभिव्यक्ति थी- वर्षों की प्रतीक्षा के बाद शुभ घड़ी है आई। अयोध्या में राम मंदिर का स्वप्न हुआ साकार। चार दशक पूर्व लिया संकल्प हुआ आज पूरा। हर ओर हो रही श्री राम की जय जयकार। ईशांत शर्मा ईशू ने सुनाया- भविष्य की योजनाओं से ग्रसित हमारी जवानी है, सच यह है कि ये मेरी अधूरी कहानी है। आवरण अग्रवाल ने आह्वान किया- आजकल कितने सहज आचरण हो गए हैं। कल तलक घुटने थे जो वह अब चरण हो गए है।। मयंक शर्मा ने सुनाया- राम तुम्हें आना होगा इस, धरा पर अबकी बार भी, करना होगा धर्मशस्त्र से, दीन दुःखी उद्धार भी।। रघुराज सिंह निश्चल ने सुनाया- अक्षर अक्षर हैं सिया, शब्द शब्द श्रीराम। मन से हर क्षण में, सियाराम का नाम। ओंकार सिंह ओंकार के उद्गार थे - हाथ में लेकर तीर-कमान, हमारे राम पधारे। हम सभी करते हैं गुणगान, हमारे राम पधारे।। रामदत्त द्विवेदी का कहना था- धन्य है राहगीर को जो नमन करते हैं। वंदनीय है शीश उनके चरण धरते हैं।। रश्मि चौधरी का कहना था- घर के बंटवारों में इतना खो गए। भाई ही भाई के दुश्मन हो गए। खींच दी दीवार दो दिलों के बीच में। उसके बाद वह जमाने के हो गए।। राजीव प्रखर द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।

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